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रामायण से महाभारत तक शमी का महत्व, अब इंदौर में घट रही उपस्थिति Shami's importance from Ramayana to Mahabharata, now its presence in Indore is decreasing

दशहरा पर्व पर शमी पूजन संपन्न

इंदौर/मालवमंथन द्वारा प्रतिवर्ष की परंपरा अनुसार यश, शौर्य एवं वीरता के प्रतीक शमी (खेजड़ी) वृक्ष का पूजन इस वर्ष भी विजयादशमी को मानव सेवा ट्रस्ट,देवी अहिल्या वेद विद्यालय परिसर में संपन्न हुआ।

 इस आयोजन का उद्देश्य धार्मिक आस्था के साथ-साथ समाज में शमी वृक्ष के संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन का संदेश देना रहा। पर्यावरणविद् डॉ. स्वप्निल व्यास ने अपने उद्बोधन में कहा कि “भारतीय संस्कृति में शमी केवल एक वृक्ष नहीं बल्कि पराक्रम और विजय का प्रतीक है। रामायण में भगवान श्रीराम ने लंका विजय के लिए शस्त्र शमी वृक्ष के नीचे स्थापित किए थे। महाभारत में अर्जुन ने शमी वृक्ष की छांव में अपना गांडीव धनुष सुरक्षित रखा था। तभी से शमी को विजय और शौर्य का प्रतीक माना गया। राजस्थान और मरुस्थलीय क्षेत्रों में इसे ‘खेजड़ी’ नाम से जाना जाता है और यह रेगिस्तानी जीवन का आधार है। यह वृक्ष न केवल कठिन परिस्थितियों में हरा रहता है बल्कि पशुओं और मानव दोनों के लिए जीवनदायी है। उन्होंने आगे कहा कि आज इंदौर जैसे हरित शहर में भी शमी वृक्ष बहुत कम दिखाई देते हैं, जबकि इनका धार्मिक और पर्यावरणीय महत्व बहुत बड़ा है।हमें चाहिए कि हम शमी वृक्ष का संरक्षण करें और नए पौधों को रोपित कर आने वाली पीढ़ियों को इसका संदेश दें। जब प्रकृति संकट में है, तब ऐसे वृक्ष ही हमें जीवन की दिशा दिखाते हैं। संस्था के मैनेजिंग ट्रस्टी मनोहर बाहेती एवं पुखराज गहलोत की उपस्थिति में कार्यक्रम की जानकारी देते हुए संस्था प्रबंधक एवं कार्यक्रम सयोंजक द्वारका मालवीया ने कहा कि मालवमंथन संस्था का उद्देश्य केवल पर्वों पर अनुष्ठान करना नहीं, बल्कि समाज को हरियाली और पर्यावरण के महत्व से जोड़ना है। संस्था समय-समय पर वृक्षारोपण और पर्यावरणीय जागरूकता अभियान भी चलाती है। शमी पूजन का धार्मिक अनुष्ठान प्रधानाचार्य शुभम शर्मा एवं केशव जोशी द्वारा विधि-विधानपूर्वक कराया गया पूजन के बाद विद्यालय परिसर में शमी वृक्ष का रोपण किया गया। कार्यक्रम में विद्यार्थियों के साथ विद्यालय परिवार उपस्थित रहा

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