छोटे कद के बड़े पत्रकार कीर्ति राणा की किताब ‘किस्से कलमगिरी के’ का विमोचन Release of the book 'Kalamgiri ke Kisse' by the small stature big journalist Kirti Rana

छोटे कद के बड़े पत्रकार कीर्ति राणा की किताब ‘किस्से कलमगिरी के’ का विमोचन Release of the book 'Kalamgiri ke Kisse' by the small stature big journalist Kirti Rana

छोटे कद के बड़े पत्रकार कीर्ति राणा की किताब ‘किस्से कलमगिरी के’ का विमोचन Release of the book 'Kalamgiri ke Kisse' by the small stature big journalist Kirti Rana

कीर्ति राणा ने अपनी कलम हमेशा दूसरो के अधिकारों के लिए चलाई, सत्य को उद्घाटित किया, समाज से सम्मान पाया 

•••वरिष्ठ पत्रकार उमेश रेखे, पद्मश्री विजयदत्त श्रीधर और शिक्षाविद डॉ आरएस माखीजा सम्मानित 

इंदौर। गरिमामय एवं आत्मीय समारोह में 4 दशक से मैदानी पत्रकारिता के पर्याय बने वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा की प्रथम कृति ‘किस्से कलमगिरी के’ का लोकार्पण जाल सभागृह में आयोजित हुआ। समारोह के अतिथि जीवन प्रबंधन गुरु पं. विजय शंकर मेहता, महापौर पुष्यमित्र भार्गव, वरिष्ठ पत्रकार प्रकाश हिंदुस्तानी, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता महा विद्यालय भोपाल के कुलगुरु विजय मनोहर तिवारी थे। अध्यक्षता राष्ट्र कवि संचालक सत्यनारायण सत्तन ने की। 

अपने संबोधन में सत्तन ने कीर्ति राणा को बधाई देते हुए कहा कि कीर्ति ऐसा पत्रकार है जिसने अपनी कलम हमेशा दूसरो के अधिकारों के लिए चलाई और सत्य को उद्घाटित किया। ऐसे पत्रकार बहुत बिरले होते हैं। सत्य प्रिय हो यह जरूरी नहीं , सत्य को किसी विशेषण की आवश्यकता भी नही है। कीर्ति है तो वामन रूप लेकिन उन्हें लेखनी ने विराट बना दिया। वे इंदौर के लाल बहादुर शास्त्री है। सत्तन ने आगे कहा कि कलम बुद्धि की शक्ति है और अक्षर अक्षय है। लिखे हुए शब्द मिटाये नहीं जा सकते हैं। इस मौके पर सत्तन ने अखबारी दुनिया के संघर्ष और पत्रकारों के दर्द पर एक कविता भी सुनाई। 

श्री मेहता ने कहा कि कीर्ति राणा बड़े मेहनती पत्रकार है, उनकी ईश्वर के प्रति गहरी आस्था है और उनका जनसंपर्क भी बेजोड़ है। वे विभीषण को ढूढ़ने में भी माहिर हैं । हम दोनों ने एक दशक तक साथ में पत्रकारिता की। यह पुस्तक ‘किस्से कलमगिरी के’ नई पीढी के लिए बड़ी उपयोगी साबित होगी, क्योकि लेखक ने अपनी बात बेबाकी के साथ कही है, जो कम सुनने को मिलती है। मेहता ने आगे कहा कि वर्तमान की पत्रकारिता एक कठिन दौर से गुजर रही है ,जहां सत्य को तलाशना बड़ा मुश्किल है। ऐसे समय में एक पत्रकार ने एक पुस्तक के रूप में सत्य को सामने लाने का साहस दिखाया, जो सराहनीय है।

महापौर भार्गव ने कहा कि कीर्ति भाई परिश्रम के पर्याय हैं और वे मेरे भी मार्गदर्शक हैं। उनकी सीख मेरे महापौर काल में संजीवनी का काम कर रही है। पुस्तक के कुछ अंश मैंने पढ़े, जो प्रेरक हैं। राखी की छुट्टी पर इसे पूरी पढूंगा। 

प्रकाश हिंदुस्तानी ने कहा कि कीर्ति भाई मैदानी संपादक हैं ,पुरुषार्थी हैं और पत्रकारिता के आईएएस हैं। वे खुलकर के अपनी बात कहते हैं और किसी को भी नहीं बख्सते हैं।वे जिस भी शहर में रहे वे उसमे घुल मिल गए और उस शहर का नमक भी अदा किया। उन पर महाकाल की भरपूर कृपा रही। उन्होंने वर्षो पहले इंदौर के जिला जेल में जो फांसी की रिपोर्टिंग की वह मील का पत्थर है और आज भी पत्रकारिता के क्षेत्र में याद की जाती है। हिंदुस्तानी ने आगे कहा कि कीर्ति राणा चाहते तो बड़े उद्यमी बन सकते थे और आज उनके बड़े -बड़े शोरूम होते, लेकिन उन्होंने पत्रकारिता को पेशा बनाया और अपनी कलम से व्यवस्थाओं पर कड़े प्रहार किये। 

विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि कीर्ति भाई की चार दशक की पत्रकारिता में 3 दशक की मेरे साथ भी रही। हम दोनों ने साथ साथ रिपोर्टिंग की और मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा भी। कीर्ति भाई हर बात को गंभीरता से सुनते और फिर उस पर कलम चलाते हैं।ऐसे पत्रकार बहुत कम हैं जो विकट परिस्थितियों में भी अपना धर्म नहीं छोड़ते है। 

🔹कीर्ति राणा ने पुस्तक लेखन पर कहा मेरे अनुभवों से सीख ले सकते हैं युवा पत्रकार 

वरिष्ठ पत्रकार कीर्ति राणा ने अपनी किताब ‘किस्से कलमगिरी के’ संबंध में कहा इस किताब में अनुभव मेरे हैं लेकिन आज के युवा पत्रकार इन अनुभवों से सीख ले सकते हैं। किताब से यह भी समझ आ सकता है कि तब और आज की पत्रकारिता में कितना बदलाव आ गया है। उस समय आज की तरह सुविधाएं, संसाधन नहीं थे, स्पॉट रिपोर्टिंग बेहद चुनौतीपूर्ण भी थी। स्पॉट रिपोर्टिंग ने ही मुझे पहचान दिलाई, जमीनी पत्रकारिता करते हुए सामाजिक संबंधों का निर्वहन भी करता रहा। इस पेशे में मुझे जो सम्मान मिला, समाज में पहचान बनी उसकी प्रमुख वजह जीवंत पत्रकारिता रही है। मैं यह किताब नहीं लिख पाता यदि परिवार-रिश्तेदारों ने त्याग नहीं किया होता। यह किताब में इन सब के साथ ही मेरी खबरों के सोर्स और पाठकों को समर्पित करता हूं।

🔹तीन विभूतियों का सम्मान 

इस मौके पर अतिथियों ने दीर्घ सेवा के लिए 85 वर्षीय वरिष्ठ पत्रकार उमेश रेखे, पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर (भोपाल), डॉ. विवेक चौरसिया (उज्जैन) और शिक्षाविद-वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. आरएस माखीजा को अंग वस्त्र और प्रतिक चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया । स्वागत उद्बोधन पत्रकार श्रीमती मीना राणा शाह ने दिया। संचालन किया संस्कृतिकर्मी संजय पटेल ने। 

🔹ये प्रमुखजन उपस्थित रहे

कार्यक्रम में प्रेस क्लब अध्यक्ष अरविंद तिवारी, संजय त्रिपाठी, दीपक कर्दम,स्टेट प्रेस क्लब अध्यक्ष प्रवीण खारीवाल,सोनाली यादव, मांगीलाल चौहान, कमलेश्वर सिंह, राजकुमार गुप्ता, प्रदीप मिश्रा, शैलेश पाठक, शिवाजी मोहिते, रामेश्वर गुप्ता, सीबी सिंह, संतोष सिंह गौतम, समर सिंह पंवार, निखिल दवे, धरा पांडेय, डॉ आरपी बिरथरे, कौशल बंसल, संगीता बापना परिवार, एडवोकेट केपी माहेश्वरी, विजय सिंह चौहान, अजय सिंह चौहान, अनिल राठौर अन्नू, अनिल गौड़, नीलेश नीमा, प्रवीण जोशी सहित बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि उपस्थित थे।

🔹प्रकाश हिंदुस्तानी ने किताब की समीक्षा करते हुए कहा कीर्ति राणा जी 40 से अधिक वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय हैं. उन्होंने पत्रकारिता में केबिन में बैठकर ज्ञान बघारने का काम नहीं किया, बल्कि वे फील्ड में पत्रकारिता करते रहे. उनकी पत्रकारिता का स्टाइल राजेंद्र माथुर साहब या प्रभाष जोशी जी की तरह की पत्रकारिता नहीं थी, बल्कि सुरेंद्र प्रताप सिंह, गोपी कृष्ण गुप्ता, शशीन्द्र जलधारी और महेंद्र बापना की तरीके की रही है. फील्ड में. 

 आज उनकी जिस किताब का विमोचन हो रहा है, उसमें कई लोगों से अंतरंग संबंधों और प्रोफेशनल घटनाक्रम का जिक्र है, माननीय श्रवण गर्ग साहब, पंडित विजय शंकर मेहता साहब, सुधीर अग्रवाल जी, एन के सिंह साहब, गोकुल शर्मा जी, रमेश अग्रवाल साहब, कल्पेश याग्निक जी और राजकुमार केसवानी जी के किस्से भी इसमें शामिल है. इसके अलावा और भी कई विषय है जो आपके हृदय के तारों को झनझना सकते हैं.

 इस किताब में कीर्ति राणा ने बताया है कि कैसे महेंद्र बापना की रिपोर्टिंग की स्टाइल उनकी अपनी स्टाइल बन गई, कैसे उन्होंने संपादक रहते हुए श्री सिंथेटिक्स के मजदूरों की लड़ाई लड़ी, कैसे उन्होंने संपादक के रूप में अपने हर एडिशन को सजाया. वे जिस शहर में रहे उसी शहर के रहे और उस शहर का नमक अदा किया. चाहे वह इंदौर हो, मुंबई हो, उज्जैन हो, उदयपुर हो, श्रीगंगानगर हो या शिमला हो. वे हमेशा एक मैदानी पत्रकार ही रहे। 

 बाबा महाकाल की उन पर खास कृपा बनी रही. उन्होंने सभी धर्माचार्य का सानिध्य प्राप्त किया. कई सिंहस्थ कवर किये. हिंदू धर्माचार्य के अलावा बोहरा धर्मगुरु बुरहानुद्दीन साहब का भी आशीष उन्हें मिल चुका है।  एक रिपोर्टर के रूप में उन्होंने अखबार की हर तरह की खबरें कवर की. उनकी विशिष्ट रिपोर्टिंग में एक फांसी की लाइव रिपोर्टिंग भी शामिल है, जिस पर महत्वपूर्ण लघु फ़िल्म बनी थी. इस फ़िल्म में उनकी भी भूमिका थी। 

 एक संपादक के रूप में उन्होंने अपने अखबार की विश्वसनीय बढ़ाई, जो दुष्कर कार्य है. उन्होंने अखबार को अलग-अलग समाज में पहुंचाया.

कीर्ति राणा जी की खूबी रही कि उन्होंने कभी भी प्रबंधन के गुस्से का शिकार अपने मातहत साथियों को नहीं बनाया. न ही उनको ढाल की तरह इस्तेमाल किया, बल्कि वह खुद उनके लिए ढाल बनकर रहे। 

 इस किताब में उनके मनमोहन किस्से हैं, उनके संघर्ष ए किस्से उनकी लड़ाई और जीत ए किस्से भी हैं.

हार्दिक शुभकामनाएं कीर्ति जी, आप स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें और इसी तरह जीवंत पत्रकारिता करते रहे। 

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