आदिवासियों ने पारंपरिक तरीके से बैलों की पूजा कर मनाए दिवावी(दीपावली का त्यौहार)The tribals celebrated Diwali (the festival of Diwali) by worshiping bullocks in a traditional way.

 आदिवासियों ने पारंपरिक तरीके से बैलों की पूजा कर मनाए दिवावी(दीपावली का त्यौहार)

पाटी से दिपक मालवीया:- बड़वानी जिले में सबसे ज्यादा आदिवासी समाज के लोग ही निवास करते हैं। जो कि त्यौहार हो या शादी- ब्याह अपने पारंपरिक तरीके से मनाते हैं। त्योहारों पर शहर के लोग देवी देवताओं की पूजा करते हैं तो आदिवासी समाज पूर्वजो, खत्रियों व धरती माता की पूजा करते हैं। इसके अलावा खेत खलिहान की पूजा कर गुडलक व भविष्य की कामना करते हैं। इसी तरह शादी-ब्याह में शहर के लोग पंडित से मंत्रोच्चार के साथ गणेश जी पूजा अर्चना कर व हवन कुंड में आहुति देने के साथ अग्नि को साक्षी मानकर विवाह सम्प्पन कराते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोग शादी में पूर्वज,खत्री व धरती माता की पूजा कर बिना मंत्रोच्चार के धरती माता व पूर्वज खत्री की पूजा कर शादी सम्प्पन की जाती है। 

पाटी से दिपक मालवीया:- बड़वानी जिले में सबसे ज्यादा आदिवासी समाज के लोग ही निवास करते हैं। जो कि त्यौहार हो या शादी- ब्याह अपने पारंपरिक तरीके से मनाते हैं। त्योहारों पर शहर के लोग देवी देवताओं की पूजा करते हैं तो आदिवासी समाज पूर्वजो, खत्रियों व धरती माता की पूजा करते हैं। इसके अलावा खेत खलिहान की पूजा कर गुडलक व भविष्य की कामना करते हैं। इसी तरह शादी-ब्याह में शहर के लोग पंडित से मंत्रोच्चार के साथ गणेश जी पूजा अर्चना कर व हवन कुंड में आहुति देने के साथ अग्नि को साक्षी मानकर विवाह सम्प्पन कराते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोग शादी में पूर्वज,खत्री व धरती माता की पूजा कर बिना मंत्रोच्चार के धरती माता व पूर्वज खत्री की पूजा कर शादी सम्प्पन की जाती है।

जयस संगठन के जिलाध्यक्ष सतीष डुडवे ने बताया कि आदिवासी समाज के त्यौहारो की बात करे तो शहर के लोग कैलेंडर के अनुसार दीपावली मनाते हैं लेकिन आदिवासी समाज में दीवावी(दीपावली) कैलेंडर के अनुसार नहीं होती है। आदिवासी समाज द्वारा अलग-अलग गांव में अलग-अलग दिन दीपावली मनाते हैं। दीवावी (दीपावली) का दिन तय करने के लिए गांव के मुखिया पटेल, गांव डाहला, बड़वा, पुजारा, वारती,कोटवाल समेत गांव के अन्य लोग गांव के देव- बापदेव के यहां इकट्ठे होते हैं। वहां पर एक-दूसरे से विचार-विमर्श करते हैं कि गांव में कुछ मुख्य कार्य या किसी की मृयु के बाद बारवां या अन्य कुछ कार्य तो नहीं है। अगर है तो किस दिन है। यदि गांव में बारवां या अन्य दुःख का कार्य हैं तो गांव में

पाटी से दिपक मालवीया:- बड़वानी जिले में सबसे ज्यादा आदिवासी समाज के लोग ही निवास करते हैं। जो कि त्यौहार हो या शादी- ब्याह अपने पारंपरिक तरीके से मनाते हैं। त्योहारों पर शहर के लोग देवी देवताओं की पूजा करते हैं तो आदिवासी समाज पूर्वजो, खत्रियों व धरती माता की पूजा करते हैं। इसके अलावा खेत खलिहान की पूजा कर गुडलक व भविष्य की कामना करते हैं। इसी तरह शादी-ब्याह में शहर के लोग पंडित से मंत्रोच्चार के साथ गणेश जी पूजा अर्चना कर व हवन कुंड में आहुति देने के साथ अग्नि को साक्षी मानकर विवाह सम्प्पन कराते हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के आदिवासी समाज के लोग शादी में पूर्वज,खत्री व धरती माता की पूजा कर बिना मंत्रोच्चार के धरती माता व पूर्वज खत्री की पूजा कर शादी सम्प्पन की जाती है।

 दीवावी(दीपावली) उस कार्य को होने के बाद में ही रखते हैं, दीवावी(दीपावली)का दिन तय होने के बाद सम्बंधित गांव का कोटवाल प्रत्येक घर-घर जाकर दीपावली की सूचना करता है। दीपावली का त्यौहार मनाने के लिए जो दिन तय करने बैठते हैं उसे दिवावी "टाकना” कहते हैं। आदिवासी समाज में दीवावी (दीपावली) तीन दिन तक मनाते हैं। पहले दिन घर की साफ़-सफ़ाई और गोबर से घर में लिपाई की जाती है वही दिवावी(दीपावली) के दूसरे चावल का पकवान बनाते हैं। उसके बाद घर के मुख्या व बड़े व्यक्ति द्वारा चावल से बने पकवान को अपनी कुल देवी को अपनी संस्कृति के अनुसार अपने पुरखो का नाम लेकर भोग लगाते हैं और दारू की धार से भी भोग लगाते हैं। उसके बाद में घर के बाहर खत्रीस (पितृ भोग) करते हैं, जहां पर पूर्वजों का नाम लेकर चावल का पकवान का भोग लगाते, इसके बाद मेहमानों को खिलाते हैं। रात में गांव के सभी लोग इकट्ठे होकर ढोल बजाकर नाचते है और खुशियां मनाते हैं।  

दीवावी(दीपावली) के तीसरे दिन मुख्य त्यौहार होता है। उसे बैल का त्यौहार होकर बेलों की पूजा की जाती हैं,बैल को सजाते भी हैं और उनके गले में घंटी और घुंगरू भी बांधते हैं। गांव का मुख्या व घर का व्यक्ति पशु बांधने के स्थान व बेलों की पूजा करते हैं। आदिवासी संस्कृति अनुसार बैल को अनाज (दाण) खिलाते हैं जो बाजरा, व चवले को मिलाकर रखा जाता हैं उसे पकाया नही जाता है। एक सूपड़े में रखकर पूजा होती है इस दौरान सूपड़े में दाण के साथ चांदी के आभूषण व सिक्के भी रखते हैं, 

अनाज(दान) को थोड़ा बचाकर बेलों के पैर में डालकर हाथ जोड़कर आशीर्वाद लेते हैं।

इसी परंपरा का निर्वहन करते हुए शुक्रवार को पाटी विकास खंड के ग्राम बुदि में दिवावी(दीपावली) का त्यौहार मनाया गया। शुक्रवार दिवावी(दीपावली) का तीसरा दिन था। तीसरे दिन स्कूल फलिया बुदि में परिवार के मुख्या नानला सोलंकी ने अपने परिवार के 5 घरों में पूर्वज,खत्री व धरती माता की पूजा कर बेलों को अनाज(दान) खिलाया। इस दौरान बेलों की पूजा भी की गई। बेलों को सजाया भी गया। और अनाज(दान) बेलों के पैर रखकर आशीर्वाद लिया। इस दौरान भाकरिया सोलंकी, लाला सोलंकी, मुकेश सोलंकी, शांतिलाल समेत अन्य मौजूद थे।

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