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आदिवासियों का परम्परागत सांस्कृतिक पर्व भगुरिया Traditional cultural festival of tribals Bhaguria Dabang Desh

 आदिवासियों का परम्परागत सांस्कृतिक पर्व भगुरिया " Traditional cultural festival of tribals "Bhaguria"

            धवन माहेश्वरी

आदिवासी समाज अपनी मौज मस्ती और रंगीले स्वभाव से सदियों से अपनी अलग पहचान बनाए हुए हैं  जो हमेशा मौज-मस्ती उनके स्वभाव में हैं। यह मौज मस्ती खासकर भगुरिया पर्व में देखने को मिलती है। बताते हैं कि भगुरिया पर्व में यह अपना जीवनसाथी तलाश ने का भी  कार्य करते हैं। यह पर्व आदिवासी युवक युवतियों के लिए एक अलग ही महत्व रखता है। इनको भगुरिया पर्व का बहुत ही बेसब्री से इंतजार रहता है।भगोरिया में हर उम्र के महिला पुरुष अपने अपने तरीके से परिधान पहनकर मदमस्त होकर भगुरिया त्यौहार को मनाते हैं। जहां भगुरिया पर्व का आदिवासी समाज के युवक युवतियों का इंतजार रहता है। 

वही शहरी लोगों को भी भगुरिया पर्व का इंतजार मेले में घूमने की मोज़ मस्ती धमाल करने के लिए रहता है। भगुरिया  पर्व होली के 6 दिन पूर्व से आरम्भ होता है ओर होली के दिन यह समाप्त होता है। खासकर भगुरिया आदिवासी बहुल जिलों में ही मनाया जाता है। यह पर्व उमंग उत्साह और प्रणय मिलाप के लिए जाना जाता है।  भगुरिया में युवक-युवती एक दूसरे को देख कर भले ही जान पहचान हो या ना हो अपने प्रेम का इजहार करते दिखाई देते हैं, यह मैं नहीं लोग लोग बताते हैं की भगोरिया में ऐसा होता है। भगोरिया हाट भी सामान्य हॉट के दिन ही लगता है बस अंतर केवल इतना रहता है कि सामान्य हाट केवल सामान्य तौर तरीके से सामग्री क्रय करने के लिए लगता है वही भगोरिया हाट में मेले का आकार में लगता है। जिसमें वह तमाम सुविधाएं जो एक शहरी क्षेत्र के मेले में प्राप्त होती है वह सुविधाएं भगुरिया हाट में देखने और उसका उपयोग करने के लिए मिल जाती है। इस भगोरिया में बच्चे झूलों चकरी,ओर नये नये प्रकार के मनोरंजन के साधनों को देखने व उसमे बीतने को लालाहीत वाले होकर इंतजार करते रहते हैं।

 वही युवा लोग अपने अपने जीवन साथी की तलाश को आतुर रहते हैं। वही बड़े बुजुर्ग लोग मदमस्त होकर मांदल की थाप पर नाचने में मग्न रहते हैं। आदिवासी अंचल में भगुरिया एक अपनी अलग ही पहचान लिए रहता है जिससे आदिवासी संस्कृति की पहचान होती है।भगोरिया में युवक युवती की टोलियां रंग बिरंगे परिधान पहने झूले चकरी का आनंद लेती है वही एक दूसरे को साथ नृत्य करने में भी मशगूल  रहते हैं वही युवा बांसुरी की धुन राग रागिनी छेड़ते रहते हैं,वही मांदल की थाप पर थिरकते पैरों को देख अपना भी मन थिरकने को मजबूर हो जाता है । भगुरिया में गीत संगीत के साथ मादल ढोल एवं बांसुरी की मधुर लहरिया सुनने को मिलती है  वही आदिवासी लोकगीत भी आदिवासी महिला पुरुषों के द्वारा गाए जाते हैं जिनको सुनकर मन आनंदित हो जाता है ,और आजकल तो डीजे का जमाना है और कई आदिवासी लोक गीतों को गीतकारों ने अच्छे अच्छे गीतों को बनाकर कर सोशल मीडिया पर प्रसारित किया है।

 आदिवासी भाषा में बनाए गए लोकगीत आज सारे भारत में प्रसिद्ध है। चाहे वह काका बाबा ना पोरिया हो, हो या भीमा का होइरिया ब्याव हो इतने अच्छे संगीत में सजाया गया गीत कानों में मधुर संगीत घोलते रहते हैं, और इन गीतों को जगह जगह लगे साउंड सिस्टम से भगुरिया हाट में जगह-जगह लगाए गए साउंड से सुनने को मिल ही जाते है। इस पर्व पर आदिवासी समाज के सभी युवक युवतियां बच्चे रंगीन पोशाकों में सज धज कर गले में रुमाल सर पर फेटा ,कमर में बेल्ट आँखों पर रंगीन चश्मा और महिलाएं खासकर युवतियां पैर से लेकर सिर तक भारी भारी चांदी के गहनों में सजी धजी सबरी भगुरिया हाट में आती है और युवकों के साथ बराबरी से मांदल की थाप पर नृत्य करते झुंड ओर टोलियों में देखी जा सकती है। वैसे मान्यता है कि इस भगुरिया में युवक युवती को अपना जीवन साथी तलाशने का पूरा पूरा अवसर मिलता है। लड़के वही लड़कियों को गुलाल लगाकर और पान खिला कर प्रणय निवेदन स्वीकार करने का आग्रह करते हैं और लड़की की इच्छा होती है

 तो वह स्वीकार कर देती है  नही करती है तो वह लड़का एकतरफा चाहने लगता है ओर मौका देख कर वह उसे अपने साथियों के सहयोग से भगाकर ले जाने में भी कोई कोर कसर नहीं छोड़ता है, यह एक मान्यता है जो लोग बताते है, उसके बाद समाज के रीति रिवाज के अनुसार दोनों परिवारों में सुलह समझौता पंचों की मौजूदगी में होता है ऐसा बताते हैं। कुल मिलाकर भगोरिया पर्व आनन्द और उत्साह का त्यौहार है यह लोग मस्त होकर इस त्यौहार को बहुत ही खुशी से मनाते हैं, और भगोरिया हाट से नमकीन मिठाई इत्यादि खरीद कर घर ले जाते हैं। आदिवासी अंचल के  लोग मजदूरी करने के लिए गुजरात महाराष्ट्र और राजस्थान जाते हैं वह लोग भगुरिया पर्व से कुछ समय पहले भगुरिया ओर होली मनाने अपने गांव में लौटते हैं और त्यौहार की तैयारी करते हुए बाजार से वस्त्र और अपनी सामर्थ्य अनुसार चांदी के गहने व आवश्यकता की वस्तुएं खरीदते हैं। स्थानीय व्यापारियों को भी भगुरिया पर्व का बेसब्री से इंतजार रहता है। क्योंकि इस समय सबसे ज्यादा खरीदी आदिवासियों के द्वारा ही भगुरिया पर्व उमंग ओर उत्साह से मनाने के लिए क्रय की जाती है। भगुरिया पर्व वर्ष में केवल एक बार आता है। 

आदिवासी परंपरा और संस्कृति का या एक सबसे बड़ा पर्व माना जाता है  इस भगुरिया पर्व में खासकर अलीराजपुर जिले के वालपुर में जब भगोरिया का दिन होता है तब उसको देखने के लिए देश, विदेशों से काफी लोग आते हैं। वही देश की जानी मानी मीडिया पत्रकार साथी और जनप्रतिनिधि वालपुर का भगुरिया देखने को अवश्य पहुंचते हैं। बालपुर का भगोरिया अपने आप में एक अलग ही प्रकार का अनूठा भगुरिया मेला लगता है जहां पर आदिवासी युवक युवतियां एक ही तरह की रंगीन वस्त्र पहन कर सुबह से से सुसज्जित होकर एक साथ डोली बना नृत्य करते हैं और यहां तक की युवतियां युवकों के कंधों पर खड़ा होकर भी नृत्य करती है वह एक बहुत ही आकर्षण का केंद्र है। मध्यप्रदेश में वालपुर का भगुरिया अपना एक अलग ही महत्व रखता है मध्यप्रदेश शासन ने भी पूर्व में इस भगुरिया की तस्वीरों को मध्यप्रदेश प्रदेश शासन के कैलेंडर में उकेरा था। देश विदेश के लोगों को भी वालपुर का भगुरिया का बेसब्री से इंतजार रहता है। 

और शहरी क्षेत्र के लोगों भी भगुरिया का आनंद लेने के लिए भगुरिया हाट बाजार में घूमते हुए  देखे जा सकते हैं। कुल मिलाकर अब यह पर्व वह धीरे धीरे मेले के रूप में आकार लेता जा रहा है। जहां अब बड़े बड़े झूले चकरिया बड़ी बड़ी दुकान है और स्टाल लगने लगे हैं ,और अब आवागमन के साधन होने से आसपास के लोग को यात्रा करने और आने जाने की पर्याप्त सुविधाएं मिल गई है तो यह भी जहां जहां पर हाट बाजार का दिन होता है वहां भगुरिया पर्व मनाने  अवश्य ही जाते हैं ,और उमंग और उत्साह उत्साह से मदमस्त होकर भगुरिया का आनंद लेते हैं।

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