सनातन धर्म और समरसता एक-दूसरे का पूरक: मिथिलेशनंदिनी शरण Sanatan Dharma and harmony complement each other: Mithilashanandini Sharan

सनातन धर्म और समरसता एक-दूसरे का पूरक: मिथिलेशनंदिनी शरण Sanatan Dharma and harmony complement each other: Mithilashanandini Sharan

सनातन धर्म और समरसता एक-दूसरे का पूरक: मिथिलेशनंदिनी शरण

समरस विचार मंथन: वक्ताओं ने कहा-षड्यंत्रकारियों ने भारत पर राज करने के लिए पैदा किया अलगाव

दबंग देश ग्वालियर,म०प्र

सनातन धर्म और समरसता एक-दूसरे का पूरक हैं। सनातन की मूल भावना सर्वे भवंतु सुखिन:, वसुधैव कुटुंबकम्, सियाराम मय सब जग जानी है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण महाकुंभ हैं। जिसमें हर जाति के लोग एक ही घाट पर एक ही धारा में स्नान बड़े ही श्रद्धा भाव के साथ करते हैं। यही नहीं देश के विभिन्न मंदिरों के भंडारे में भी ऊंच-नीच का भेद भाव देखने को नहीं मिलता है। 

यह बात अयोध्या की सिद्धपीठ हनुमन्निवास के आचार्य स्वामी मिथिलेशनंदिनी शरण महाराज ने समरस विचार मंथन कार्यक्रम के उद्घाटन समारोह में मुख्य वक्ता की आसंदी से कही। कार्यक्रम की अध्यक्षता राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के कुलगुरु प्रो.अरविंद कुमार शुक्ला ने की। विशिष्ट अतिथि लेखक, चिंतक एवं आलोट के विधायक चिंतामणि मालवीय, प्रख्यात विचारक मोहन नारायण, कोली समाज के राष्ट्रीय महामंत्री द्वारका प्रसाद अग्रवाल थे। प्रज्ञा प्रवाह मध्यभारत प्रांत, पुरुषार्थ सेवा संगठन एवं राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में मिथिलेशनंदिनी शरण महाराज ने हिंदू समाज की समरस परंपरा विषय पर कहा कि समाज सुव्यवस्थित तरीके से चले इसलिए मनु महाराज ने वर्ण व्यवस्था काम के आधार पर की थी। इसमें किसी का महत्व कम नहीं था। शरीर के अंगों की तरह सभी लोग एक-दूसरे के पूरक हैं। कोई किसी से कम नहीं है। महर्षि जावाल का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वह दासी पुत्र थे। उनकी माता को नहीं पता था कि उनके पिता कौन है। उनकी योग्यता को देखते हुए उन्हें ऋषि ने दीक्षा दी थी। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलगुरु प्रो.शुक्ला ने कहा कि जिस तरह गुणवक्ता के आधार पर भूमि में अंतर होता है, उसी तरह व्यक्ति की क्षमता के अनुसार उसे कार्य करने का मौका मिलता है। लेकिन सभी जीवों में ब्रह्म तत्व एक ही है। 

कार्यक्रम के प्रारंभ में कार्यक्रम संयोजक सुधीर शर्मा ने कार्यक्रम की भूमिका के बारे में प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत में सभी को जोड़े रखने का आधार धर्म रहा है। 

अतिथियों का स्वागत प्रज्ञा प्रवाह के प्रांत संयोजक धीरेन्द्र चतुर्वेदी, मनीष राजौरिया, रीना सोलंकी, डॉ.कुसुम भदौरिया, आशीष पांडेय, जवाहर प्रजापति, वर्षा सुमन ने किया। कार्यक्रम का संचालन अभिषेक शर्मा ने किया। 

भारत पर राज करने अंग्रेजों ने डाली थी फूट: मालवीय

दूसरे सत्र के मुख्य वक्ता लेखक, चिंतक एवं आलोट के विधायक चिंतामणि मालवीय ने समरस समाज को विभाजित करने के षड्यंत्र विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि भारत को गुलाम बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने फूट डालो और शासन करो की नीति के तहत आर्य-अनार्य, दलित-सवर्ण के मुद्दे को उठाया था। यही नहीं तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की गलत नीतियों का फायदा उठाकर पादरियों ने पूर्वात्तर राज्यों में हिंदुओं को ईसाई बनाया था। श्री मालवीय ने बताया कि संत रविदास को भी मुसलमानों ने इस्लाम धर्म अपनाने का लालच दिया था, लेकिन उन्होंने दृढ़ता के साथ प्रतिकार करते हुए कहा था उन्हें मरना पसंद करेंगे, लेकिन मुसलमान नहीं बनेंगे। इसी तरह बाबा साहब अंबेडकर ने भी सोच समझकर बौद्ध धर्म अपनाया था। अगर वह मुसलमान या ईसाई बन जाते तो उनके अनुयायी भी वही धर्म स्वीकार कर लेते। जिससे देश में अस्थिरता पैदा हो सकती थी। इस अवसर पर उन्होंने कई श्रोताओं की जिज्ञासाओं का भी समाधान किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ.संदीप मौर्य ने किया। 

हमने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिया: मोहन नारायण

तीसरे सत्र में मुख्य वक्ता प्रख्यात विचारक मोहन नारायण जी ने समरस समाज के निर्माण में संतों, महापुरुषों एवं संगठनों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए 

कहा कि हमने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिया। उन्होंने कहा कि समरस समाज के निर्माण में संतों और महापुरुषों की अहम भूमिका रही है। रामानुजाचार्य जैसे कई संतों ने जिन्हें समाज में अस्प्रश्य माना जाता था, उन्हें दीक्षा दी थी। संत कबीर दास ने रुढिवादिता का विरोध किया था। गौतम बुद्ध, आद्य शंकराचार्य, दयानंद सरस्वती, संत रविदास आदि ने भी समरसता पर जोर दिया था। संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर भी इस्लाम और ईसाइयत के विरोधी थे। कार्यक्रम का संचालन रामकिशोर उपाध्याय ने किया। 

एकता और समरसता का प्रतीक महाकुंभ: शांतनु गुप्ता

चौथे सत्र में मुख्य वक्ता प्रख्यात फिल्म पटकथा लेखक एवं राजनीतिक विश्लेषक शांतनु गुप्ता ने समरसता का विराट स्वरूप: कुंभ मेला-अध्ययन, अनुभव एवं अनुभूति विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि महाकुंभ राष्ट्रीय एकता और समरसता का प्रतीक है। यहां से दिव्यता का भी संदेश मिला। उन्होंने बताया कि प्रयागराज कुंभ में 66 करोड़ से ज्यादा लोग पहुंचे थे। वहीं 2024 में हुए चुनाव में 64 करोड़ लोगों ने मतदान किया था। जबकि ज्यादा से ज्यादा मतदान कराने के लिए पूरा तंत्र लगा हुआ था। उन्होंने मेला की व्यवस्था सहित कई संस्मरण सुनाए। इस सत्र का संचालन कमल भदौरिया ने किया।

अयोध्या की सिद्धपीठ हनुमन्निवास के आचार्य स्वामी मिथिलेशनंदिनी शरण महाराज ने अंतिम समापन सत्र में अपने महत्वपूर्ण विचार रखे तथा जिज्ञासुओं की जिज्ञासा का समाधान किया।

इस कार्यक्रम में ग्वालियर, भिंड, मुरैना, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर आदि से अनुसूचित जाति के बंधु भगिनियों की बड़ी संख्या में उपस्थिति रही।

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