Top News

सांसद प्रतिनिधि नीलेश उपाध्याय ने बेटी के विवाह में रचा इतिहास, श्रमिकों को दिया सम्मान का मंच MP representative Nilesh Upadhyay created history in his daughter's wedding, gave a platform to honour workers

बेटमा से बदली सोच की दिशा: 

सांसद प्रतिनिधि नीलेश उपाध्याय ने बेटी के विवाह में रचा इतिहास, श्रमिकों को दिया सम्मान का मंच

दीपक शर्मा 

देपालपुर। समाज में जब कोई नई सोच जन्म लेती है, तो वह न सिर्फ दिलों को छूती है बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बन जाती है। कुछ ऐसा ही दृश्य बेटमा के एक निजी गार्डन में देखने को मिला, जहाँ सांसद प्रतिनिधि नीलेश उपाध्याय ने अपनी बेटी डॉ. पूजा उपाध्याय के विवाह समारोह को एक ऐतिहासिक और सामाजिक चेतना के मंच में बदल दिया। यह आयोजन केवल एक पारंपरिक विवाह समारोह नहीं रहा, बल्कि सामाजिक सम्मान, संवेदना और इंसानियत की नई मिसाल बन गया। इस विवाह कार्यक्रम में ‘श्रमेण जयते’ की भावना को जीवंत करते हुए श्रमिकों का सार्वजनिक रूप से सम्मान किया गया। इन श्रमिकों में कैटरिंग स्टाफ, भोजन बनाने वाले रसोइये, टेंट कर्मी, सफाईकर्मी और आयोजन स्थल पर दिन-रात मेहनत करने वाले मजदूर शामिल थे।

 समाज में यह पहली बार देखने को मिला कि जिन लोगों की मेहनत पर आयोजन की भव्यता टिकी होती है, उन्हें सिर्फ पारिश्रमिक नहीं, बल्कि सामाजिक मान्यता और सम्मान भी मिला। यह एक नज़ीर है, जिसे पूरे इंदौर जिले में पहले कभी किसी विवाह समारोह में नहीं देखा गया। यहाँ तक कि यह मध्य प्रदेश में भी एक अपवाद बन गया है, जो अब एक बदलाव की शुरुआत बन सकता है। सांसद प्रतिनिधि नीलेश उपाध्याय ने इस अवसर पर मंच से जो शब्द कहे, वे सिर्फ एक समारोह की शोभा नहीं थे, बल्कि एक समाज को आईना दिखाने वाले संदेश थे। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रेरणा से उन्होंने यह पहल की, क्योंकि जब तक श्रमिकों का सम्मान नहीं होगा, तब तक समाज में समरसता और सच्ची विकास भावना नहीं आ सकती। इस कार्यक्रम में सबसे खास बात यह रही कि स्वयं आयोजनकर्ता ने श्रमिकों को मंच पर बुलाया, माला पहनाई, अंगवस्त्र भेंट किए और सबके सामने उन्हें धन्यवाद दिया। श्रमिकों की आँखों में गर्व और भावुकता के आँसू थे। कई श्रमिकों ने कहा कि उनके जीवन में ऐसा सम्मान उन्हें पहले कभी नहीं मिला। एक सफाईकर्मी ने भाव-विह्वल होकर कहा कि आज पहली बार ऐसा लगा कि हम केवल श्रमिक नहीं, इस समाज के सम्मानित अंग हैं। समाज के लोगों ने इस पहल की खुलकर सराहना की। जनप्रतिनिधियों, सामाजिक संगठनों और स्थानीय नागरिकों ने इसे एक "सोच बदलने वाली" घटना बताया। 

ऐसे समय में जब आयोजन दिखावे की दौड़ बन चुके हैं, नीलेश उपाध्याय की इस पहल ने सादगी, मानवता और सम्मान की परिभाषा को फिर से जीवंत कर दिया। इस आयोजन ने कई प्रश्न भी समाज के सामने रख दिए हैं। क्या हम अपने दैनिक जीवन में उन लोगों के प्रति संवेदनशील हैं, जो हमारे लिए श्रम करते हैं? क्या हम उन्हें केवल एक 'सर्विस प्रोवाइडर' मानते हैं, या इंसान के रूप में सम्मान देने को तैयार हैं? यह विवाह समारोह अब केवल एक पारिवारिक आयोजन नहीं रहा, बल्कि एक जन-जागरूकता अभियान का स्वरूप ले चुका है। अब समय आ गया है कि समाज में हर आयोजन, हर उत्सव केवल निजी खुशी का कारण न रहे, बल्कि वह सामूहिक संवेदनशीलता, श्रम के प्रति कृतज्ञता और सामाजिक समरसता का भी मंच बने। देपालपुर की इस पहल ने यह सिद्ध कर दिया है कि जब इरादे नेक हों, तो परंपराएँ भी दिशा बदल सकती हैं और एक नई रोशनी में जगमगाने लगती हैं। इस ऐतिहासिक क्षण ने यह भी साबित कर दिया कि बदलती पीढ़ियों को केवल संपत्ति ही नहीं, बल्कि सोच और दृष्टिकोण की विरासत देनी चाहिए। यह सम्मान केवल श्रमिकों का नहीं, बल्कि उस सोच का है जो समाज में हर व्यक्ति को बराबरी से देखने का साहस रखती है।

Post a Comment

Previous Post Next Post