एक विचार: समय की ताल पर.A thought: On the beat of time.

एक विचार: समय की ताल पर.

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     जीवन का सिरा ढूंढने में न जाने कितना ही समय बर्बाद हुए जा रहा है... पर शायद जीवन का ना कोई आदि है ना अंत... 

    

जीवन, भगवान शंकर की उस परीक्षा की तरह है, जिसमें ब्रह्मा और विष्णु आदि और अंत ढूंढते हुए दो दिशाओं में दौड़ते रहे पर ना आदि मिला ना अंत... अतः जीवन का ना कोई आदि है ना अंत...

हम अक्सर किसी काम को करने के लिए शुरुआत की प्रतीक्षा में रहते हैं, सोचते हैं कि, शायद कभी कोई समय या कोई जगह हमारे अनुकूल होगी तब हम अपना कदम बढ़ाएंगे, पर सोचने वाली गंभीर बात यह है क्या उसे समय तक हम इस धरती पर रह पाएंगे? या अपनी दबी हुई इच्छाओं के साथ ही दुनिया से चले जाएंगे? 



जीवन एक निरंतर चलने वाले संगीत की तरह है जहां सुर और ताल लगातार हमें कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.... जरूरत है तो केवल उसे सुनने की और अपने लक्ष्य की ओर कदमताल करने की!

      

हमें केवल इसकी धुन से धुन और ताल से ताल मिलनी है... बिल्कुल वैसे ही जैसे कि गरबे में जब एक झुंड रास खेल रहा होता है तब हमें झुंड के बीच में अपनी जगह बनाने के लिए पहले ताल से ताल मिलाकर अपने आप को तैयार कर अचानक ही झुंड में शामिल होकर मस्त हो जाना होता है। ऐसे ही इस निरंतर चलने वाली समय की धारा में अपने कदम को मिलाकर अचानक ही गति का हिस्सा बनकर मस्त हो जाना ही जीवन है। 

                                 -रमन🖋️

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