मणिपुर भी कठिन है और कोलकता भी Manipur is also difficult and so is Kolkata

 मणिपुर भी कठिन है और कोलकता भी 

राजनीति में हर दिन कुछ न कुछ नया होता है ।  इसीलिए राजनीति किसी ' स्टंट  ' फिल्म की तरह चलती रहती है ।  राजनीति की मौलिकता ही इसकी विशेषता बन गयी है । 

 अब देखिये न जो प्रधानमंत्री एक साल से ज्यादा समय से हिंसा की आग में झुलस रहे मणिपुर की तरफ पैर करके भी नहीं सोते वे ही प्रधानमंत्री बंगाल के संदेशखाली में हिंसा और अत्याचार के खिलाफ खेला करने बंगाल  जा पहुंचे। ये प्रधानमंत्री जी का साहस है या दुस्साहस देश के मतदाताओं को तय करना चाहिए।

राजनीति में हर दिन कुछ न कुछ नया होता है ।  इसीलिए राजनीति किसी ' स्टंट  ' फिल्म की तरह चलती रहती है ।  राजनीति की मौलिकता ही इसकी विशेषता बन गयी है ।

तीसरी बार सत्तारूढ़ होने की मजबूरी ने भाजपा और उसके नेतृत्व की दशा ' सांप-छंछून्दर ' जैसी कर सकती है।  अब 370  सीटों का लक्ष्य घोषित करने वाले भाजपा के युगल महाराज न पीछे हट  सकते हैं और आगे बढ़ने में सौ बाधाएं सामने मुंह बाएं खड़ी हुईं  है। 

 पूरब और दक्षिण में खेला करने की सीमित संभावनाएं हैं और पश्चिम तथा उत्तर में बकौल भाजपा ' घमंडिया गठबंधन ' लगातार एकजुट होता दिखाई दे रहा है। हालाँकि भाजपा के मुकाबले इस विपक्षी गठबंधन पर न गौधन है

 और न गजधन,बाजधन तथा रतनधन की खान तो पहले ही सरकार ने छीन ली है ।  जिसके पास थोड़ा-बहुत धन इलेक्टोरल , बांड से आया भी है उसके पीछे ईडी एढ़ी -चोटी का जोर लगा ही रही है।

मिशन 370  को कामयाब बनाने के लिए भाजपा अभी भी सेंधमारी में लगी हुई है ।, जबकि भाजपा को पता है कि सेंधमारी एक जघन्य अपराध है। अनैतिक कृत्य है। भाजपा ने हमेशा सत्ता के निकट पहुँचने के लिए सेंधमारी का रास्ता अपनाया। कर्नाटक   से शुरू हुआ ये नाटक मध्यप्रदेश,बिहार,महाराष्ट्र होता हुआ

 झारखंड में औंधे मुंह गिर पड़ा ,लेकिन भाजपा  ने हार नहीं मानी,इसके लिए भाजपा के दो हंसों की जोड़ी की सराहना   की जाना चाहिए। भाजपा ने हाल ही में राज्य सभा चुनाव के दौरान भी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के विधायक दलों में सेंध लगाईं। हिमाचल में तो भाजपा को मध्य प्रदेश की ही तरह एक पुराने राजघराने का विभीषण भी मिल गया है ,जो कभी भी हिमाचल की अच्छी-खासी सरकार को गिराने में काम आ सकते हैं।

बात बंगाल से शुरू हुई थी सो वहीं वापस आना चाहिये ।  भाजपा  हर हाल में बंगाल की रक्तरंजित राजनीति पर अपना अधिपत्य  चाहती है ।  एक दशक के शासनकाल में भाजपा ने तमाम विरोधियों के गढ़ ढहा दिए लेकिन बंगाल में उसे कामयाबी नहीं मिली। बंगाल में तृण मूल कांग्रेस की सुप्रीमो सुश्री ममता बनर्जी माननीय प्रधानमंत्री जी को सुप्रीम नहीं बनने दे रहीं हैं।

 संदेशखाली के प्रकरण के बाद भी भाजपा ममता बनर्जी का किला शायद ही ढहा पाए। भाजपा के तीसरी बार सत्ता में वापस लौटने में बंगाल सबसे बड़ी बाधा है। मणिपुर से भाजपा इतनी ज्यादा परेशान नहीं हैं ,जितनी बंगाल से है । 

 बंगाल की राजनीति में भाजपा की न गारंटी चल रही  है और न कोई जादू। भाजपा के हाथ से महाराष्ट्र भी खिसकता नजर आता है ।  यहां 2019  की तरह के परिणाम मिलना कठिन है।

मजे की बात ये है की गोदी मीडिया भाजपा के लिए लगातार बंगाल में शुभ की तलाश में है। इस बीच इंडिया टीवी-सीएनएक्स की ओर से पश्चिम बंगाल को लेकर ओपिनियन पोल कराया गया।  सर्वे के अनुसार अगर अभी लोकसभा चुनाव कराया जाता है तो पश्चिम बंगाल की 42 सीटों में से ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी 21 सीटों पर जीत हासिल कर सकती है।

  वहीं बीजेपी 20 सीटों पर जीत दर्ज कर सकती है। ओपिनियन पोल के अनुसार कांग्रेस के खाते में सिर्फ एक सीट जाता दिख रहा है।  यह सर्वे पश्चिम बंगाल की सभी 42 लोकसभा सीटों के लिए 5 से 23 फरवरी के बीच कराया गया।

जहाँ तक मै देख पा रहा हूँ उसके मुताबिक भाजपा ने अभी तक हार नहीं मानी है ।  भाजपा तृण मूल कांग्रेस से संवाद बनाये हुए है ।  भयादोहन की कोशिश कर रही है । खुद प्रधानमंत्री जी ममता बनर्जी से राजभवन में वार्ता कर चुके हैं।  सेंधमारी के साथ सौदेबाजी भी पर्दे के पीछे से जारी है।

 ममता बनर्जी को भी नीतीश कुमार बनाने की कोशिशें हैं ,लेकिन अभी तक इन कोशिशों में भाजपा को कोई शुभ संकेत नहीं मिले हैं। बंगाल के बाद एक और शांत राज्य है ओडिशा ,जहाँ भाजपा की दाल पूरी तरह से नहीं गल पाती ।  हालाँकि भाजपा ने ओड़िशा से श्रीमती द्रोपदी मुर्मू को राष्ट्र्पति बनाकर अपने लिए जगह बनाने की एक कोशिश की है। लेकिन यहाँ नवीन पटनायक की पकड़ ढीली नहीं हो रही है ।  संघ भी ओडिशा में ज्यादा तोड़फोड़ नहीं कर पाया है। लेकिन अभियान जारी है।

आने वाले आम चुनावों में मणिपुर सुलगता ही रहेगा, बंगाल,महाराष्ट्र  ,बिहार  में अस्थिरता बनी ही रहेगी। और मुमकिन है कि इस बार सबसे ज्यादा सीटें देने वाले उत्तर प्रदेश  में भी गंगा अपनी धारा बदल दे। उत्तर प्रदेश में भाजपा ने सबसे ज्यादा मेहनत और पैसा खर्च किया है।लेकिन फिर भी यहां भी भाजपा घोषी का उपचुनाव हार चुकी है।

 मुझे लगता है कि उत्तर प्रदेश ही  भाजपा की उच्छ्श्रंखलता का जबाब देने वाला राज्य बन सकता है। भारत का भविष्य आने वाले आम चुनावों पर ही निर्भर है। इस चुनाव के बाद ये तय हो जाएगा कि देश में ' गंगा-जमुनी ' संस्कृति का सम्मान होगा या नहीं ? देश में लोकतंत्र मजबूत होगा या और बीमार ? संविधान मजबूत होगा या और जर्जर ?भारतीय राजनीति की 'स्टंट फिल्म में सब कुछ सम्भव है।

@ राकेश अचल  

achalrakesh1959@gmail.com

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