आत्मा को प्राप्त करने के लिये बल ( इच्छा शक्ति) की जागृति आवश्यक - सहजयोग
नायमात्मा बलहीनेन लभ्यो न च प्रमादात् तपसो वाप्यलिङ्गात्।
एतैरुपायैर्यतते यस्तु विद्वांस्तस्यैष आत्मा विशते ब्रह्मधाम ॥ 'मुण्डकोपनिषद'
सहजयोग आज का महायोग है। इसे महायोग क्यूं कहा गया? क्योंकि सहजयोग में एक साथ हजारों साधकों को प. पू. श्री माताजी की परम कृपा में आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो जाता है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त होना हमारे जीवन की परम सिद्धि है। अत्याधिक मंगलमय घटना है।
सहजयोग नाड़ी तंत्र पर आधारित एक शास्त्रीय ध्यान पद्धति है, जिसमें सदैव कुंडलिनी जागरण और अनुभूति की ही बात की जाती है। पूर्व काल मे यह एक अत्यंत गोपनीय क्रिया हुआ करती थी परंतु १९७० साल से सामूहिक आत्मसाक्षात्कार' एक सहज क्रिया बन गयी और एक साथ हजारों को आत्मसाक्षात्कार की अनुभूति होने लगी और धीरे धीरे लोगो का जीवन आनंदमय तरीके से साधना पथ पर अग्रसर होने लगा।
प. पूज्य श्री माताजी जब साधकों को आत्मसाक्षात्कार प्रदान करतीं हैं तो जिनके हथेलियों के अग्रभाग और तालु से ठंडक आने लगती है वो सभी पार हो जाते हैं। उसके बाद सभी को नियमित सुबह शाम- ध्यान करके अपनी प्रगति करनी होती है । परंतु सभी साधक इस आनंद को प्राप्त नहीं कर पाते ऐसा क्यों होता है?
इसका उत्तर उपरोक्त वर्णित मुण्डकोपनिष से लिये गये श्लोक मे मिलता है। यह श्लोक कहता है कि आत्मरूप परब्रम्ह उपासना रूपी बल से रहित मनुष्य को प्राप्त नहीं हो सकते। समस्त भोगों की आशा छोड़कर एकमात्र परमात्मा की उत्कट अभिलाषा रखते हुए निरंतर विशुद्ध भाव से अपने इष्टदेव का चिंतन करना यही उपासना रूपी बल का संचय है।
कर्तव्यत्याग कर विषय भोगों में लिप्त सात्विक लक्षणों से रहित साधक को भी आत्म ज्ञान नहीं हो पाता। किंतु जो बुद्धिमान साधक शुद्ध चित्त से जब अपने परमेश्वर का ध्यान करता है तो वह सत्- चित् - आनंद को प्राप्त कर लेता है।
आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने तथा परमात्मा को अनुभूत करने का अनुभव प्राप्त करने हेतु सहजयोग से संबंधित जानकारी निम्न साधनों से प्राप्त कर सकते हैं। यह पूर्णतया निशुल्क है।
टोल फ्री नं – 1800 2700 800 बेवसाइट - sahajayoga.org.in
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