गौरैया
आज पुरानी यादों ने फिर से मुझे घेरा है कुछ मधुर- कटु स्मृतियों ने मन पर डाला डेरा है ,याद आते है कुछ मधुर अहसास
जो फैला ते है भूली यादों की ताजी सुवास ।
जब तुम आये बनके मेरी जीवन बगिया के माली ,तुम्हारा अहसास पाकर खिल उठी हर एक डाली वो जिसे दी थी तुमने प्रेम की स्थिर अनुपम छैया वो थी मैं। तुम्हारी बगिया की एक छोटी सी गोरैया, तुम्हारी बगिया के पेड़ की छाया में
'बैठकर खुले नयनों से सुंदर स्वप्न सजाती थी स्वप्न सजाकर इन नयनों में ज्योति सी आ जाती थी। पागल पवन सी मैं बनकर ईधर-उधर वह जाती थी थोड़ा-थोड़ा अंतर में उड़कर वापस डाली पर आती थी तुम लगते मानों वरगद विशाल और मैं चंचल अमराई थी अबधी (समुद्र,)की गहराई जितनी इस प्रेम की गहराई थी। मानों जीवन प्रणय पुंज में श्रृंग (पुष्प) धार सी वह जाती थी वो जिसे दी भी तुमने जीवन में स्थिरता की छैया,
वो थी मैं ! तुम्हारी बगिया की एक छोटी सी गौरैया !भूली-बिसरी स्मृतियाँ सोचकर आज खुश हो रही ये गौरैया कितनी मनोहारी थी । वो प्रेम की अनुपम छैया! आज सोच रही गौरैया आज सोच रही गौरैया,!
पर अब तो केवल स्मृतियों के शेष-शेष से साये है, मधुर-मधुर स्मृतियों के अवशेष ही रह पाये है स्वप्न वाग अब शेष ना रहा कंटक-कंटक पग छाये है । छद् म - छदम कुछ गहरे हल्के घाव अधिक गहराये है
चकवा - चकवी से हम बनकर,
नदी के दो छोर पर छाये है
मुझे देख नदी मुस्कायी। पूछी कैसी हो गोरैया मैने कहा अब बस एक स्मृतिशेष है गोरैया केवल स्मृतिशेष है गौरैया
काव्यांजली शर्मा
योगा इंस्ट्रॅक्टर
जिला गुना -मध्यप्रदेश-
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