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होली के बाद आओ आज मनाए होला- महल्ला After Holi, come celebrate today Hola- Mahalla

 होली के बाद आओ आज मनाए होला- महल्ला

  ਹੋਲੀ ਕੀਨੀ ਸੰਤ ਸੇਵ ॥

 ਰੰਗ ਲਾਗਾ ਅਤਿ ਲਾਲ ਦੇਵ ॥

    (ਬਸੰਤ, ਮਹਲਾ ੫, ਅੰਗ ੧੧੮੦)

होली किन्नी संत सेव!!

रंग लगा अत लाल देव!!

भाव:मैं होली का त्योहार संतों की सेवा करके मनाता हूं। मैं प्रभु के दिव्य प्रेम के गहरे लाल रंग से रंग गया हूँ।कलयुग में हिंदुस्तान मुगलिया सल्तनत के अधीन, कई तरह के जुल्मों का शिकार रहा है... 

और जैसा की हर युग में असुरों के विरुद्ध कोई ना कोई देवीय शक्ति अवतार लेकर मानवता का कल्याण करती आई है उसी तरह मुगलों के अत्याचार से भारतवर्ष को बचाने के लिए गुरु गोविंद सिंह साहब जी ने, उनकी आत्म कथा बिचतर नाटक

भाव:मैं होली का त्योहार संतों की सेवा करके मनाता हूं। मैं प्रभु के दिव्य प्रेम के गहरे लाल रंग से रंग गया हूँ।कलयुग में हिंदुस्तान मुगलिया सल्तनत के अधीन, कई तरह के जुल्मों का शिकार रहा है...

के अनुसार हर इंसान को संत और सिपाही दोनों बनाने की आज्ञा के साथ धरती पर अवतार लिया। तो जब औरंगजेब ने अपने अहंकार के चलते भारतवर्ष के सभी पौराणिक त्योहारों को मनाने में पाबंदी लगा दी थी तब श्री गुरु गोविंद सिंह साहब ने शौर्य का प्रदर्शन करते हुए औरंगजेब को चुनौती दी कि किसी भी व्यक्ति को किसी भी धर्म को अपनाने के लिए मजबूर या प्रताड़ित नहीं किया जाना चाहिए 

धर्म की नियुक्ति एवं उसके अनुरूप चलने की प्रत्येक व्यक्ति की अपनी स्वयं की इच्छा होनी चाहिए तब सिख धर्म के मार्शल आर्ट गतका की शौर्य पूर्वक प्रतियोगिताएं करवा कर उसके जीत की खुशी में खुशबूदार प्राकृतिक रंगों की होली खेलकर खुले आम मुगलिया सल्तनत के सामने त्योहार मनाया गया जिसे *होला-महल्ला* कहा गया।

*होला-महल्ला*, होली के वसंत उत्सव पर आधारित है। गुरु ग्रंथ साहिब में भगवान की सेवा करके होली मनाने का निर्देश देने वाले अंश हैं। होली के रंग प्रभु के प्रेम में प्रकट होते हैं। चूंकि होली फागन या फाल्गन की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन के साथ शुरू होती है, इसलिए होली के त्योहार को फाल्गुन के त्योहार के रूप में जाना जाता है, भले ही होली का वास्तविक दिन पड़ता हो। चेत के चंद्र माह के पहले दिन। *श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने होली मनाने की इस पद्धति को एक मार्शल (शौर्य) तत्व जोड़कर और होली के एक दिन बाद मनाया जाने वाला होला-महल्ला के नाम से मनाया जाता है।*

होला-महल्ला परिभाषा के बारे में वह सब कुछ जो आपको जानना चाहिए: होला शब्द, होला का एक विनिमेय ध्वन्यात्मक संक्षिप्त रूप, एक पंजाबी शब्द का व्युत्पन्न है जिसका अर्थ है हमले की शुरुआत या सामने से हमला। महल्ला का मूल अरबी है और इसका वर्णन है जिसका अर्थ है सेना की एक बटालियन या सैन्य रेजिमेंट जो पूरे राजचिह्न के साथ मार्च कर रही है। उच्चारण: हो-ला मा-हाल-ला वैकल्पिक वर्तनी: होल्ला महला…

गुरु जी ने *होला-महल्ला* को सिखों के लिए “गतका” नामक शस्त्र विद्या की प्रतियोगिताएं करवा कर योद्धाओं को अपने मार्शल कौशल का प्रदर्शन करने का अवसर बनाया। यह संभवतः शाही सत्ता के खिलाफ एक गंभीर संघर्ष को रोकने और लोगों की ऊर्जा को अधिक उपयोगी गतिविधि में लगाने के लिए किया गया था।  होला महल्ला आनंदपुर साहिब के उत्तर-पश्चिम में चरण गंगा नदी के पार एक किले, होलगढ़ के पास एक खुले मैदान में आयोजित होने वाला एक वार्षिक कार्यक्रम है।

*रंग :* गुरु गोबिंद सिंह के दरबारी कवि भाई नंद लाल जी के अनुसार, *सिख मार्शल आर्ट, गतका की शौर्य पराक्रम की प्रतियोगिता के पूरा होने के बाद प्रतिभागियों द्वारा रंग फेंके जाते हैं: गुलाब जल, एम्बर, कस्तूरी और केसरिया रंग के पानी का उपयोग किया जाता है।*  सिख परंपरा मानती है कि गुरु गोबिंद सिंह ने भी गुलाल के उपयोग के साथ रंगीन त्योहार में भाग लिया करते थे, जो *निहंगों* 

(निहंग सिंह: निहंग खालसा सेना के सदस्य हैं जो अपने विशिष्ट नीले पारंपरिक वस्त्र और दुमाला के लिए जाने जाते हैं, जिन्हें अक्सर अलंकृत किया जाता है। वे होला महल्ला उत्सव में प्रमुख हैं।) द्वारा "एक दूसरे और दर्शकों पर गुलाल (लाल रंग का पाउडर) छिड़कने" के साथ आधुनिक समय तक जीवित रहा है।

भारत एक विशाल देश है विभिन्न जातियों, प्रजातियों और प्रांतों के साथ हम सदेव ही विश्व को विभिन्नता में भी एकता का अलौकिक उदाहरण देते रहे हैं, परंतु क्या हम स्वयं अपने आसपास के सभी समुदायों के इतिहास अथवा उद्देश्यों के बारे में जानते हैं?  यदि कहीं ना कहीं इन सब की कमी है तो उसे पूरा करना भी हम सभी का ही दायित्व है....  

आज सिखों का एक मुख्य पर्व *होला-महल्ला* है जिसके बारे में साहित्यिक तौर पर प्राय अंग्रेजी अथवा गुरुमुखी भाषा में कई तरह के वर्णन है परंतु मैं सदैव ही अपनी इर्द-गिर्द के समूह को ध्यान में रखते हुए इन कथा-कहानियों अथवा अनुसंधानों को देवनागरी या हिंदी में अनुवादित कर प्रस्तुत करना ठीक समझती हूं ताकि हम सब अपने ज्ञान के पिटारे में हर तरह की जानकारी का संग्रह कर सके और जागृत बुद्धिमत्ता से समय समय पर होने वाले सामुदायिक उतार-चढ़ाव में सही निर्णय ले सकें।

इसी के साथ आप सभी को मेरी ओर से होला- महल्ला की बहुत-बहुत शुभकामनाएं

मैं कामना करती हूं कि हम सभी अपने भीतर *कोमल संत स्वरूप के साथ-साथ सजग एवं साहसी सिपाही* का भी निर्माण करें ताकि कभी भी कोई भी अन्याय से, क्रूरता से या किसी भी तरह की अज्ञानता से हमें प्रताड़ित न कर सके।

रमनदीप कौर

पटियाला, पंजाब

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