भारत का दबदबा चाँद पर
अमेरिका, रूस और चीन के बाद भारत के वैज्ञानिकों ने देश को चाँद की सतह पर लैंड करने वाला चौथा देश बना दिया है। वैज्ञानिकों को बधाई। चन्द्रमा पर एक रोवर को उतारकर अंतरिक्ष अन्वेषण में सफलता की सीढ़ी चढ़ चुके हैं।
साँपों और साधुओं की भूमि कहा जाने वाला भारत आज स्पेस टेक्नोलॉजी में दुनिया के ताकतवर देशों के साथ खड़ा है। चन्द्रयान-3 अन्तरिक्ष यान का रोवर चाँद की सतह का अध्ययन करेगा । लैंडर के मिशन की पूरी अवधि एक चंद्र दिवस की रहने वाली है, जो पृथ्वी के 14 दिन के बराबर होती है। पिछली बार क्रैश लैंडिंग हुई थी। पर इस बार 'स्पेस के क्षेत्र में हमारी विशेषज्ञता में विशेष विकास हुआ है।
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी ने एक शक्ति और अंतरिक्ष वाणिज्य की नई सीमा के रूप में देश के आगमन को रेखांकित किया है। 75 मिलियन डॉलर से कम के बजट पर निर्मित, चन्द्रयान-3 आज 140 करोड़ भारतीयों की उम्मीदों को साकार कर चुका है। चाँद को चूमने पर ये उम्मीदें हर भारतीय के दिल में खुशी बनकर उभरी हैं। पूरे देश को बेसब्री से चंद्रयान की लैंडिंग का इंतजार था वह खत्म हुआ।
इस साल की शुरुआत में एक जापानी स्टार्ट-अप का प्रयास ऊँचाई की गलत गणना के कारण लैंडर के दुर्घटनाग्रस्त होने के साथ समाप्त हुआ, जिसका मतलब था कि अंतरिक्ष यान का ईंधन खत्म हो गया था। स्पेसआईएल और इज़राइल एयरोस्पेस इंडस्ट्रीज (आईएआई) द्वारा निर्मित एक इज़राइली अंतरिक्ष यान भी इस साल की शुरुआत में चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया था।
2020 में चंद्रयान-2 मिशन में एक ऑर्बिटर को सफलतापूर्वक तैनात करने के बाद भारत का अंतरिक्ष अभियान इस मिशन से मुक्ति की तलाश में लैंडर और रोवर को उतारने में सफल हुए हैं। चंद्रयान-2 मिशन को स्थायी रूप से छाया वाले चंद्रमा के क्रेटर का अध्ययन करने के लिए डिज़ाइन किया गया था। ऐसा माना जाता है कि इसमें पानी का भंडार है जिसकी पुष्टि 2008 के पहले चंद्रयान-1 मिशन से हुई थी - जिसने चंद्रमा की कक्षा तो ली लेकिन उतरा नहीं था किन्तु इस बार सब योजना के अनुसार हुआ, चंद्रयान -3 में 2-मीटर (6।5-फुट) लंबा लैंडर शामिल है जिसे चंद्रमा के पास एक रोवर तैनात करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।
दक्षिणी ध्रुव जहाँ पानी की बर्फ पाई गई है। उम्मीद है कि प्रयोगों की एक श्रृंखला चलाने के बाद रोवर दो सप्ताह तक कार्यशील रहेगा। चन्द्रयान-3 का लैंडर और रोवर चाँद की सतह पर उतरने के बाद अपने मिशन का अंजाम देने के लिए सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करेगा। चाँद पर 14 दिन तक दिन और अगले 14 दिन तक रात रहती है, अगर चन्द्रयान ऐसे वक्त में चाँद पर उतरेगा जब वहाँ रात हो तो वह काम नहीं कर पाएगा।
इसरो उक्त सभी तथ्यों की गणना करने के बाद इस नतीजे पर पहुँचा कि 23 अगस्त से चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर सूरज की रौशनी उपलब्ध रहेगी। वहांँ रात्रि के 14 दिन की अवधि 22 अगस्त को समाप्त हो रही थी। 23 अगस्त से 5 सितम्बर के बीच दक्षिणी ध्रुव पर धूप निकलेगी, जिसकी मदद से चन्द्रयान का रोवर चार्ज हो सकेगा और अपने मिशन को अंजाम देगा।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा लॉन्च देश का यह पहला बड़ा मिशन है। 2020 के बाद से, जब भारत निजी लॉन्च के लिए खुला, अंतरिक्ष स्टार्ट-अप की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है। भारत ने, हाल के वर्षों में, खुद को वाणिज्यिक अंतरिक्ष संचालन के एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता के रूप में मजबूत किया है, जिसमें नवंबर 2022 में प्रारंभ नामक मिशन के हिस्से के रूप में अपने पहले निजी तौर पर विकसित रॉकेट, विक्रम-एस का प्रक्षेपण भी शामिल है, जिसका अर्थ है शुरुआत।
भारत चाहता है कि उसकी अंतरिक्ष कंपनियाँ अगले दशक के भीतर वैश्विक प्रक्षेपण बाजार में अपनी हिस्सेदारी पाँच गुना बढ़ा लें, जो 2020 में राजस्व के मामले में 2 प्रतिशत से अधिक है। भारत छोटे उपग्रहों को लॉन्च करने में अनुभवी है और इस बाजार पर कब्जा करने की कोशिश कर रहा है। खुद को उपग्रह प्रक्षेपण सुविधा के रूप में पेश करना है, भारत ने यूके स्थित उपग्रह कंपनी वनवेब के लिए 36 इंटरनेट उपग्रहों को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया है। "भारत अन्तरिक्ष को एक रणनीतिक संपत्ति के रूप में देखता है और इसका लक्ष्य बाहरी अंतरिक्ष में अग्रणी खिलाड़ियों में से एक बनना है।" "यह भारत के लिए इस उद्योग में अग्रणी बनने का अवसर हो सकता है।" इसरो के वैज्ञानिकों ने हमारा गौरव बढ़ाया है। सभी वैज्ञानिकों के साथ केन्द्र सरकार और समूचे देश वासियों को सधन्यवाद हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ।
गिरेन्द्रसिंह भदौरिया "प्राण" इन्दौर

Post a Comment