धन कुछ तो है पर सब कुछ नहीं है आचार्य श्री विशुद्ध सागरजी
बड़ोत। बालको याद रखो धन कुछ तो है पर सब कुछ नहीं है। धन, धरती जीने के साधन हैं , पर वह भी साथ जाने वाले नहीं हैं , यहीं छूट जायेंगे । जीवन में उत्कर्ष प्राप्त करना है तो " धन को नहीं , धर्म को श्रेष्ठ मानना
वर्तमान में देश परस्पर में क्यों लड़ रहे हैं ? मात्र धन और धरती के लिए । शासकों की धन - धरती की चाह ही युद्धों की ओर धकेल रही है। यह उद्गार बड़ोत उत्तर प्रदेश में चातुर्मास कर रहे चर्या शिरोमणि आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज ने धर्म सभा को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।
इंदौर से बड़ौत गए धर्म सभा में उपस्थित महाराजश्री के युवा भक्त श्री सार्थक जैन हर्ष कासलीवाल, चिराग जैन, अतिशय जैन, अमन कासलीवाल एवं अतिशय सोनी आदि ने बताया कि आचार्य श्री ने प्रवचन में उदाहरण देते हुए आगे कहा कि साँप को कितना ही साथ में रखना , पर वह मौका देखकर डस ही लेगा । ऐसे ही धन उतना ही रखना जितना आवश्यक हो नहीं तो वही धन तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा ।
लोग पहले धन कमाने के लिए दिन - रात एक करते हैं , अधिक - से अधिक धन कमाने के लिए , फिर अस्वस्थ होकर प्राण बचाने को डॉक्टर को धन देते हैं । जीवन में क्या किया?
बाल्यकाल से यौवन काल तक पढ़ाई की फिर यौवन अवस्था धन कमाने में लगा दी और जब सुख के दिन आये तो रोगों ने घेर लिया , सो वृद्धावस्था दवाई खाते - खाते निकल गई । पूरा जीवन जोड़ने जोड़ने में व्यर्थ गमा दिया ।धन के अर्जन में और धन की रक्षा में दुःख हे । धन की चाह उतनी ही करो जिससे जीवनोपयोगी सामग्री जुटा सको , पर धन के कमाने में पूरा जीवन मत लगा देना । मनुष्य बने हो , नर देह प्राप्त की है तो इसका वेदन करो और सुखमय जीवन जियो।
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