तीन रूपों में दर्शन देती है मां जयंती..Mother Jayanti gives darshan in three forms....

तीन रूपों में दर्शन देती है मां जयंती... 

बड़वाह से मुकेश खेड़ा

बड़वाह,घने वन में प्राकृतिक सौंदर्य के बीच व चोरल नदी के तट पर अतिप्राचीन देवी मां का मंदिर है। जिसमें गुफा के अंदर मां जयंती विराजित है। जो क्षेत्रवासियों के लिए अटूट आस्था का केंद्र कहलाती है। नवरात्रि के दिनों में यहां लाखों की तादात में भक्तों का जमावड़ा लगता है। और ये पूजन-अर्चन कर दरबार में अपना शीश झुकाते हैं। देवी से मनोकामना करते है। नवरात्रि के दूसरे दिवस मंगलवार को भी यहां भारी संख्या में कतार बद्ध रुप से दर्शन के लिए श्रद्धालु दिखाई दिए। कई दूरदराज से भी पहुंचे। और दर्शन लाभ लिया। उल्लेखनीय है कि मंदिर से कई रहस्यमई किस्से जुड़े हैं और देवी साक्षात चमत्कारी बताई जाती है। मंदिर से जुड़े इतिहास पर नजर डाले तो माना जाता है कि यह मंदिर 600 से अधिक वर्ष पुराना है। मंदिर के पुजारी पंडित रामस्वरूप शर्मा, महेंद्र शर्मा का कहना है कि यहां विराजित देवी तीन रूपों में दर्शन देती है। प्रातः काल बाल अवस्था में, दोपहर में तरुणाई की लालिमा के रूप में और संध्याकाल में शांत रूप में दर्शन देती हैं। पुराने लोगों का कहना है कि बीते कई दशकों पहले तोमर वंश के राजा राणा हमीरसिंह ने विंध्याचल के वनों में जेतगढ़ किले का निर्माण कराया था। उन्होंने ही किले के समीप पहाड़ो में गुफा के अन्दर अपनी कुल देवी स्वरूप मां जयंती माता की स्थापना की थी। तत्कालीन समय में राणा हमीरसिंह का परिवार जेतगढ़ किले में ही निवास करता था। किले का नाम जेतगढ़ होने से देवी मां जयंती माता रखा गया था। कुछ लोग इसे पांडव कालीन भी बताते है।

बड़वाह,घने वन में प्राकृतिक सौंदर्य के बीच व चोरल नदी के तट पर अतिप्राचीन देवी मां का मंदिर है। जिसमें गुफा के अंदर मां जयंती विराजित है। जो क्षेत्रवासियों के लिए अटूट आस्था का केंद्र कहलाती है। नवरात्रि के दिनों में यहां लाखों की तादात में भक्तों का जमावड़ा लगता है। और ये पूजन-अर्चन कर दरबार में अपना शीश झुकाते हैं। देवी से मनोकामना करते है। नवरात्रि के दूसरे दिवस मंगलवार को भी यहां भारी संख्या में कतार बद्ध रुप से दर्शन के लिए श्रद्धालु दिखाई दिए। कई दूरदराज से भी पहुंचे। और दर्शन लाभ लिया। उल्लेखनीय है कि मंदिर से कई रहस्यमई किस्से जुड़े हैं और देवी साक्षात चमत्कारी बताई जाती है। मंदिर से जुड़े इतिहास पर नजर डाले तो माना जाता है कि यह मंदिर 600 से अधिक वर्ष पुराना है। मंदिर के पुजारी पंडित रामस्वरूप शर्मा, महेंद्र शर्मा का कहना है कि यहां विराजित देवी तीन रूपों में दर्शन देती है। प्रातः काल बाल अवस्था में, दोपहर में तरुणाई की लालिमा के रूप में और संध्याकाल में शांत रूप में दर्शन देती हैं। पुराने लोगों का कहना है कि बीते कई दशकों पहले तोमर वंश के राजा राणा हमीरसिंह ने विंध्याचल के वनों में जेतगढ़ किले का निर्माण कराया था। उन्होंने ही किले के समीप पहाड़ो में गुफा के अन्दर अपनी कुल देवी स्वरूप मां जयंती माता की स्थापना की थी। तत्कालीन समय में राणा हमीरसिंह का परिवार जेतगढ़ किले में ही निवास करता था। किले का नाम जेतगढ़ होने से देवी मां जयंती माता रखा गया था। कुछ लोग इसे पांडव कालीन भी बताते है।

बबली खेड़ा का नाम परिवर्तित कर बडवाह के रूप में बसाया-बताया जाता है कि कई वर्ष बीत जाने के बाद भी देवी माँ की मूर्ति अपने स्थान पर ही विराजित है। जबकि किला खंडर में तबदील हो चूका है। कुछ समय बाद हमीर सिंह के वंशज राणा सूरजमल जेतगढ़ छोड़कर बबली खेड़ा गाँव आये। उन्होंने बबली खेड़ा का नाम परिवर्तित कर उसे बडवाह के रूप में बसाया। साथ ही बडवाह में एक किले का निर्माण किया गया था। जहा वर्तमान में अब एसडीएम कार्यालय व न्यायालय संचालित हो रहा है।

 कालंका माता,दत्त मंदिर व कुंडों का निर्माण करवाया-पुराने लोगों का कहना है कि राणा सूरज मल ने नगर के पूर्वी छोर पर कालंका माता मंदिर एवं नगर के मध्य में सती माता मंदिर के साथ ही स्वयं भू भगवान नागेश्वर के मंदिर परिसर में कुंडो एवं दत मंदिर का भी निर्माण करवाया था। राणा वंश के वर्तमान उत्तराधिकारी के रूप में राणा राजेन्द्र सिंह जयंती माता मंदिर एवं कालंका माता मंदिर में वर्षो से आज तक सहयोग दे रहे है।3 किलोमीटर पैदल चलकर पहुंचते हैं मंदिर- उल्लेखनीय है कि शहर के कई श्रद्धालु नवरात्रि में प्रतिदिन 3 किलोमीटर पैदल चलकर माता के मंदिर पहुंचते हैं। श्रद्धालुओं का यह सिलसिला अल्प सुबह 4 बजे से शुरू हो जाता है,जो देर शाम तक चलता रहता है। और वहां जाकर मैया का जोरदार जयकारा लगाते हैं। दर्शन करते हैं। वही इन दिनों छोटे स्तर पर मेले का आयोजन भी होता है।

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