आलेख: क्यो अख़बार हुए सफल? जबकि ढेर लगी हैं चैनलों की।Article: Why are newspapers successful? Even though there are many channels.

 आलेख: क्यो अख़बार हुए सफल? जबकि ढेर लगी हैं चैनलों की।

आज बेटे का जन्मदिन हैं। सुबह-सुबह उसे अख़बार पढ़ते देख, याद आया की आज तो 3 मई हैं! यानी विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस, उसके हाथो में अखबार देख मन ही मन में सोचने लगी- "हम 21वी शताब्दी में जी रहे हैं, हमारे पास मोबाइल, टीवी जैसे कई आधुनिक यंत्र हैं। पर फिर आज के आधुनिक युवा या फिर ओल्ड फैशन बुजुर्ग, यह सभी अखबार पढ़ना क्यों पसंद करते हैं? जबकि ढेर लगी हुई हैं न्यूज चैनलों की!" 

आलेख: क्यो अख़बार हुए सफल? जबकि ढेर लगी हैं चैनलों की।Article: Why are newspapers successful? Even though there are many channels.

यह तो सच हैं की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने वर्तमान परिपेक्ष्य में काफी प्रभाव डाला हैं, किंतु आज के समय में भी अखबारों द्वारा अच्छा व्यापार चलाया जा रहा हैं। यदि इतिहास पर गौर करे तो अखबारों का सिलसिला सिर्फ 16वी शताब्दी के अंत में यूरोप में शुरू हुआ था और वही 18वी शताब्दी में भारत में "बंगाल गैजेट" के आते इस लघु महाद्वीप पर समाचार पत्रों के सिलसिले का शुभारंभ हुआ। इसी के बाद संपूर्ण विश्व से, 20वी शताब्दी के आते ही इलेक्ट्रनिक मीडिया का परिचय हुआ। जोकि काफी सफल हुआ पर शायद समाचार पत्रों तक नहीं।

पर मुद्दे पर आते हैं की क्यों अखबार ज्यादा सफल हुए? खासकर हिंदी अखबार?

 इसके कई कारण हो सकते जैसे अखबार हमे विभिन्न पहलुओं के संबंध में जानकारी प्रदान करते हैं। अखबारों की खासियत यह है कि इसे हम शांति से पढ़ सकते हैं, बिना बहस के, अखबारों की एक अच्छी बात हैं, की इसमें डिबेट के तौर पर संवाद (डायलॉग) तो डाला जा सकता हैं, पर कभी चैनलों की तरह मिर्च मसाले जैसी भड़काऊ बहस नहीं, जोकि अखबारों की एक खासियत के साथ-साथ खामी भी कहीं जा सकती हैं। क्योंकि आज-कल कई वर्गो को बहस या तमाशा देख कर आनंद मिलता हैं। और वही किसी को शांत माहौल भाता हैं।

दरअसल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का उपयोग सभी वर्ग के लोग ठीक से नहीं कर पाते। उसी के विपरीत एक समाचार पत्र को कोई भी आराम से बेहद ही कम दाम में खरीद कर पढ़ सकता हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की उपयोग करने हेतु हमे या तो किसी मोबाइल फोन या फिर कोई टीवी, लैपटॉप नहीं तो टेबलेट या आईपैड की अवश्यता होती हैं, जोकि बेहद खर्चीले होते हैं, अधिकतम बुजुर्ग वर्ग इन उपकरणों को इस्तेमाल करने में असक्षम पाए जाते हैं। जिसके कारण अखबारों का प्रयोग बरकरार हैं।

हम किसी भी समाचार पत्र को देख ले, हम उसमे साहित्य, कला, सिटी, क्राइम, राजनेतिक, पुरस्कार, खेल, शिक्षा, कहानी इंफ्रास्ट्रक्चर इत्यादि… जैसे अनेक विषयों के बारे में पढ़ सकते हैं। लेकिन चैनलों पर सिर्फ प्राइम टाइम शो, डिबैट्स, इंटरिव्यू या फिर बुलेटिन ही चलती रहती हैं। जिससे न्यूज चैनलों के कंटेंट की विविधता पर बुरा प्रभाव पड़ता हैं। किंतु चैनल तो इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का सिर्फ एक अंग हैं, पर यदि संपूर्ण इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की बात करे तो फिर यह बात थोड़ी फीकी पड़ जाती हैं। एक और बात टीवी, मोबाइल… जैसे आधुनिक गेजेट्स पर समाचार पढ़ते या देखते वक्त उपकरण में से निकलती हुई खतरनाक रेडियो वेव्स हमारे स्वास्थ्य (नेत्र स्वास्थ्य) पर बुरा  प्रभाव डालती हैं। पर अखबारों में यह संभव नहीं हैं। जिसके कारण अधिकतम अभिभावक अपने शिशु को समाचार से अवगत करने के लिए अखबार पढ़ते की सिफारिश करते हैं। इनकी एक और खासियत हैं की यह सभी वर्गो और क्षेत्रों से संबंधित विषयों की जानकारी देते हैं, यानी ज्यादा पाठको का आकर्षण।

यदि संक्षेप में बताए तो अखबारों का जीवन्त रहना उनकी विविधता, साहित्यिक मूल्य, और समर्थनीयता के कारण हो सकता है। इनका बेहद सस्ता होना और विस्तृत विषय सूची ने उन्हें आज भी लोकप्रिय बनाए रखा है। इसके अलावा, अखबारों का अवलोकन और अध्ययन व्यापार, शिक्षा, और अन्य क्षेत्रों में व्यक्तिगत और व्यावसायिक उपयोग के लिए महत्वपूर्ण है।


डॉ. सुनीता श्रीवास्तव 

इंदौर, मध्य प्रदेश 

sunita.shrivastava0309@gmail.com

9826887380

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