विश्व मुक्केबाज़ी के आसमान में स्वर्णिम आभा बिखेरती भारत की बेटीयां India's daughters spread golden aura in the sky of world boxing

 विश्व मुक्केबाज़ी के आसमान में स्वर्णिम आभा बिखेरती भारत की बेटीयां

भारत के आजाद होने के बाद 1949 में भारतीय मुक्केबाज़ी संघ की स्थापना की गयी थी लेकिन तब इस खेल पर पुरुषों का ही एकाधिकार था लेकिन महिला खिलाड़ियों का रुझान और देखने अजर उनके निरंतर आग्रह के बाद 1994 में महिलाओं को इस  खेल में हिस्सा लेने की मान्यता मिली। और आज मेरीकोम, सरिता देवी, लेखा से लेकर निकाहत और हालिया चैंपियन बनी नीतू घणघस और स्वीटी बूरा तक देश की महिलाओं ने एक लंबा और कठिन सफर तय किया है।

भारत के आजाद होने के बाद 1949 में भारतीय मुक्केबाज़ी संघ की स्थापना की गयी थी लेकिन तब इस खेल पर पुरुषों का ही एकाधिकार था लेकिन महिला खिलाड़ियों का रुझान और देखने अजर उनके निरंतर आग्रह के बाद 1994 में महिलाओं को इस  खेल में हिस्सा लेने की मान्यता मिली। और आज मेरीकोम, सरिता देवी, लेखा से लेकर निकाहत और हालिया चैंपियन बनी नीतू घणघस और स्वीटी बूरा तक देश की महिलाओं ने एक लंबा और कठिन सफर तय किया है।

आईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप के 48 किलोग्राम वर्ग में ने मंगोलिया की लुत्सेखान अल्तानसेत्सेग को 5-0 से हराकर स्वर्ण पदक जीतने वाली 22 वर्षीय नीतू घनघास का जन्म 19 अक्टूबर 2000 को हरियाणा के भिवानी के धनाना गांव में हुआ था। पिता जय भगवान, हरियाणा विधानसभा में बिल मैसेंजर के रूप में काम करते हैं। माँ मुकेश देवी है, उनकी छोटी बहन तमन्ना है जो शिमला से एमबीबीएस की पढ़ाई कर रही हैं और छोटा भाई अक्षित कुमार शूटिंग का खिलाड़ी है, जो राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में भाग ले चुका है।

भारत के आजाद होने के बाद 1949 में भारतीय मुक्केबाज़ी संघ की स्थापना की गयी थी लेकिन तब इस खेल पर पुरुषों का ही एकाधिकार था लेकिन महिला खिलाड़ियों का रुझान और देखने अजर उनके निरंतर आग्रह के बाद 1994 में महिलाओं को इस  खेल में हिस्सा लेने की मान्यता मिली। और आज मेरीकोम, सरिता देवी, लेखा से लेकर निकाहत और हालिया चैंपियन बनी नीतू घणघस और स्वीटी बूरा तक देश की महिलाओं ने एक लंबा और कठिन सफर तय किया है।

अपने परिवार की लाड़ली नीतू अपने बचपन में बहुत नटखट थी। माँ के हाथ का बना देशी घी का चूरमा नीतू को बहुत पसंद है, जब भी वो घर लौटती है तो चूरमा और करेले की सब्जी जरूर बनाई जाती है। 2008 में विजेंदर के ओलंपिक बोक्सिंग में कांस्य पदक जीतकर लौटेने पर पूरे हरियाणा में बने उत्सवी माहौल में नीतू के मन में मुक्केबाज बनने की इच्छा जागी और पिता के प्रोत्साहन देने 12 साल की उम्र में ही उन्होने यह खेल सीखना शुरू कर दिया लेकिन दो साल बाद कोई उल्लेखनीय सफलता नाही मिलने से हतोत्साहित होकर वो इसे छोडना चाहती थी लेकिन उनके परिवार ने उनको हौंसला बँधाया और पिता मुकेश ने तीन साल का अवैतनिक अवकाश और 6 लाख का कर्ज लेकर भी नीतू को भिवानी मुक्केबाज़ी क्लब के संस्थापक और प्रसिद्ध कोच जगदीश सिंह से प्रशिक्षण दिलावाया और अपनी लाड़ली के सपने पूरे करने में उसका सम्पूर्ण साथ दिया।  

भारत के आजाद होने के बाद 1949 में भारतीय मुक्केबाज़ी संघ की स्थापना की गयी थी लेकिन तब इस खेल पर पुरुषों का ही एकाधिकार था लेकिन महिला खिलाड़ियों का रुझान और देखने अजर उनके निरंतर आग्रह के बाद 1994 में महिलाओं को इस  खेल में हिस्सा लेने की मान्यता मिली। और आज मेरीकोम, सरिता देवी, लेखा से लेकर निकाहत और हालिया चैंपियन बनी नीतू घणघस और स्वीटी बूरा तक देश की महिलाओं ने एक लंबा और कठिन सफर तय किया है।

एक बार आत्मविश्वास गहरा जाने के बाद नीतू ने दमदार वापसी करते हुए फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने आँगन में स्वर्ण पदकों की झड़ी लगा दी 2017 में गुवाहाटी में युवा महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप और बाल्कन यूथ इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप; सोफिया, बुल्गारिया,  2018 में थाईलैंड की निल्लादा मीकून को हराकर एशियाई युवा मुक्केबाजी चैंपियनशिप और वोज्वोडिना युवा पुरुष और महिला मुक्केबाजी टूर्नामेंट, 2021 में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप, 2022 में कॉमनवेल्थ गेम्स, बमिर्ंघम, 2022 में बुल्गारिया के सोफिया में आयोजित 73वें स्ट्रैंडज मेमोरियल और कल शनिवार 25 मार्च 2023 को आईबीए महिला विश्व मुक्केबाजी चैम्पियनशिप में देश के लिए स्वर्ण पदक हासिल किया। 2019 में उन्हें कंधे में चोट लगी थी जिसके चलते उन्हें करीब 2 साल तक बॉक्सिंग रिंग से बाहर रहना पड़ा। और कोविड ने भी उन्हे परेशान किया अन्यथा इस सूची में और भी स्वर्ण  पदक जुडते। आज 22 वर्षीय नीतू घनघास अपनी श्रेणी में सबसे तेज मुक्के बरसाने वाली मुक्केबाजों में से एक हैं।

अपनी हालिया जीत के साथ नीतू ने एक नया इतिहास रचा है वो विश्व चैंपियन बनने वाली छठी भारतीय मुक्केबाज बन गईं हैं। कल के खेल में नीतू ने आक्रामक शुरुआत की और अपने पंचों के संयोजन का प्रभावी ढंग से इस्तेमाल कर पूरे मैच में अपनी बढ़त बनाए रखी। 

नीतू घनघास के बाद अब भारतीय प्रशंसकों की निगाहें स्वीटी बूरा पर जमी हैं। इसी स्पर्धा में स्वीटी ने 75-81 किलोग्राम वर्ग में भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता है। 10 जनवरी 1993 को हिसार के ग्रामीण इलाके के बास्केट बाल खिलाड़ी और पेशे से किसान पिता महेंद्र सिंह के घर एक बालिका का जन्म हुआ जिसका नाम प्यार से स्वीटी रखा गया। 2009 में अपने पिता के आग्रह पर बॉक्सिंग में जाने से पहले वो राज्य स्तर की कबड्डी खिलाड़ी थीं।

एक दशक से भी अधिक वर्षो के अपने सफर में स्वीटी ने कई उपलब्धियां अपने नाम की है जिनमें शामिल हैं, 2023 में आईबीए वल्र्ड चैंपियनशिप, दिल्ली,  2022 में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप, भोपाल और  एशियन चैंपियनशिप, जॉर्डन, 2021 में सीनियर नेशनल चैंपियनशिप, हिसार, 2018 में उमाखानोव मेमोरियल टूर्नामेंट कास्पिस्क रूस, 2015 में 16वीं सीनियर (एलीट) महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप,  2013 में 14वीं सीनियर महिला मुक्केबाजी प्रतियोगिता खटीमा, उत्तराखंड,  8वीं सीनियर महिला नॉर्थ इंडिया बॉक्सिंग चैंपियनशिप, श्रीनगर, 2012 में 8वीं फेडरेशन कप महिला बॉक्सिंग चैंपियनशिप, गुवाहाटी, 

और चौथी अंतर-क्षेत्रीय महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैम्पियनशिप, विशाखापत्तनम, 2011 में  7वीं यूथ वुमन नेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप पटियाला, एन.सी. शर्मा मेमोरियल फेडरेशन कप महिला मुक्केबाजी चैंपियनशिप, उत्तराखंड और  पहला यूबीए कप महिला मुक्केबाजी टूर्नामेंट, हिसार,  2010 में केरल के त्रिशूर में 11वीं सीनियर महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैंपियनशिप, 2009 में चौथी जूनियर महिला राष्ट्रीय मुक्केबाजी चैम्पियनशिप 2009, पटना, बिहार में जीते गए स्वर्ण पदक।

कल के मुक़ाबले में स्वीटी के लिए विश्व चैंपियन बनना आसान नहीं था, स्वीटी का मुकाबला चीन की लिन वोंग के साथ था। लिना दुनिया की नामी मुक्केबाज हैं और उनके अनुभव से पार पाना स्वीटी के लिए आसान नहीं था। मुकाबला में स्वीटी ने पहले दौर की शुरुआत धैर्यपूर्ण अंदाज में की। उसने पहले मिनट तक अपना धैर्य बनाए रखा। फिर उसने आक्रामक खेल का प्रदर्शन किया और 3-2 की बढ़त हासिल की। दूसरे राउंड में लिन ने उन्हें काफी छकाया और एक बार तो जमीन पर भी गिरा दिया, अपना धीरज ना खोटे हुए स्वीटी ने अपनी बढ़त बनाए रखी। तीसरे राउंड में दोनों खिलाड़ियों के मध्य कांटे की टक्कर हुई। चीनी मुक्केबाज ने कमाल का प्रदर्शन करते हुए स्वीटी को किनारे में ले जाकर फंसाया भी। लेकिन भारतीय खिलाड़ी ने अपना दांव जारी रखा और अंतिम मिनट के जोरदार आक्रमण के लिए ऊर्जा बचाते हुए अपने प्र्तिद्वंदी पर मुक्को की बरसात कर दी। अंतिम राउंड के बाद चीन की तरफ से मामला रिव्यू में ले जाया गया लेकिन यहां पर भी फैसला स्वीटी के पक्ष में आया और भारत को इस प्रतियोगिता में दूसरा स्वर्ण पदक मिल गया।

स्वीटी बूरा की सफलता की कहानी देश की की महिलाओं के लिए प्रेरणा देने वाली है। स्वीटी ने शादी के 10 दिन बाद ही अभ्यास शुरू कर दिया था। एक आम लड़की की तरह उनके भी अपने सपने थे और शादी के बाद उन्हें अपनी नई गृहस्थ दुनिया का निर्माण भी करना था और उनकी जिम्मेदारीयों में भी इजाफा हुआ था। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और घर की छत और सड़क पर अभ्यास जारी रखा।

स्वीटी बताती हैं कि उनके इस मुकाम तक पहुंचने में उनके पति दीपक हुड्डा का भी बड़ा योगदान है। एक अंतरराष्ट्रीय कबड्डी खिलाड़ी होने के नाते दीपक निरंतर अभ्यास की अहमियत बखूबी समझते हैं। इसी वजह से उन्होंने स्वीटी को कभी प्रैक्टिस करने से नहीं रोका। हर कदम पर दीपक ने स्वीटी का साथ दिया जिसके फलस्वरूप उन्होंने देश के लिए स्वर्ण पदक जीता है।

देश के बेटीयों के इस अद्भुत प्रदर्शन से पूरे देश में उत्साह की लहर फैली हुई है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता नीतू और अनुभवी मुक्केबाज स्वीटी को महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने पर बधाई दी। प्रधानमंत्री ने ट्वीट किया, “महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में प्रतिष्ठित स्वर्ण पदक जीतने के लिए नीतू गंघास को बधाई। भारत उनकी उल्लेखनीय उपलब्धि से प्रफुल्लित है।” “स्वीटी बूरा द्वारा असाधारण प्रदर्शन! महिला विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने के लिए उन पर गर्व है। उनकी सफलता कई उभरते एथलीटों को प्रेरित करेगी।”

राजकुमार जैन, स्वतंत्र लेखक

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