नारी तू है भाग्यविधाता
जयेश पटेल दबंग देश
बलिदान और त्याग की मूर्ति होती है नारी। अपने जीवन का हरपल वह दूसरों के सेवा में लगाकर सबको आगे बढाती है। तिनका- तिनका इकट्ठा करके घर को स्वर्ग बनाने में वह कोई कसर नही रखती। मान- अपमान सबकुछ सह कर भी उसके चेहरे पर एक अनोखी मुस्कान होती है। जीवन जीने की कला उसमें भगवान् ने बहुत खूबी से भरी है। एक घर छोड़, माता पिता के आंगन को त्याग एक अनजान व्यक्ति के जीवन की नयी यात्रा शुरू कर वह ऐसा कुछ करती है, जिस बलिदान का नाम है संघर्ष। आज तो हर कोई क्षेत्र में नारी अव्वल दर्जे के भूमिका निभा रही है नारी। इसलिए तो तीनों लोकों में नारी का सम्मान होता है। किसकी माँ बनकर , तो किसी की भार्या, किसीकी बहन तो किसीकी भाभी, इतनी सारी भूमिका बजाते हुए भी उसमें कभी रिंचक भी नहीं आता है कि, मैं कितना करती हूँ सबके लिए? इसके विपरीत उसीको पूछा जाता है कि, तुने हमारे लिए क्या किया?
इसलिए उसकी तुलना चंदन से कि गयी है। मै पन को गलाकर उसने सभी को आगे बढाया। बच्चों की परवरिश में उसने सबकुछ त्याग दिया। कभी उसने खुद के लिए कुछ भी नहीं मांगा। इसलिए आज भी देवियों की पूजा घर -घर की जाती है। संतुष्टता गहना पहनकर सजी हुई नारी ने कभी अपने लिए कुछ नहीं किया। सबका पसंदीदा खाना बनाकर वह खुद भूखी रही। कभी उसने किसी से कोई शिकायत भी नहीं किया। क्षमा की तो वह सागर है। हर कोई कोई मदद करने में वह कोई कसर नही रखती। हर काम वह इतने लगन से करती की वह काम उसके लिए एक खेल बन जाता है।
जैसे बिना नमक का भोजन स्वादहीन होता है उसी तरह बिना नारी का घर बेढंग लगता है। परिवार में जब मुसिबते आती है तो वह रात दिन एक कर परिवार को संभाल कर अपनी जिम्मेदारी बहुत खुबसूरत तरीके से निभाती है। परिवार में किसको क्या पसंद है और किसको क्या नही इसका पूरा ज्ञान उसकी बुद्धि में होता है। टिफिन में वह कभी रोटियां गिनकर नहीं देती। भोली बनकर भोलेनाथ को रिझा लेतीं है नारी। इसलिए वह शिवशक्ति के रूप में पूजी जाती है।
हरपल दूसरों के लिए सोचने वाली यह नारी कभी अपने जीवन के बारे नहीं सोचती। सबको पेटभर खाना खिलाकर वह खुद रुखा सुखा खाकर अपना पेट भरती है इसलिए वह सहनशीलता की मूर्ति है। अनपढ़ होकर भी सभी के चेहरे के भाव को वह पहचान लेती है। अपने बच्चों के लिए वह हर भूमिका निभाती है। क्षमा, सहनशीलता, मधुरता, स्नेह, सहयोगी के गुणों से वह हरपल सजी रहती है। समय आने पर वह परिवार की रक्षा के लिए विरांगनी बन सबके साथ लगती है।
हाय रे उसकी किस्मत! तिनका तिनका जोड़ जिस घर को वह सजाती है, उसी घर बुढ़ापे में उसे जगह नहीं होती है। जिसने अपना सबकुछ परिवार के लिए बलिदान दिया वह आज वृद्धाश्रम में अपना जीवन व्यतीत कर रहीं हैं। फिर भी वह किसी को दोषी नहीं मानती। शायद भगवान् को हर घर जाना संभव नहीं हुआ तो उसने माँ का रूप धारण कर लिया है। जिस दिन हर घर में नारी मुस्कुराएंगी उस दिन यह मेरा देश स्वर्ग बन जाएगा।
चलिए आज आंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर हम सभी एक दृढ़ प्रतिज्ञा करते हैं, की हम हर नारे के त्याग और बलिदान को सदा स्मृति में रख उसका दिल से सम्मान करेंगे।
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