मंदिर वही सफल है जिसकी खुद की गोशाला हो- स्वामी गोपालानंद सरस्वती। Only that temple is successful which has its own cow shed - Swami Gopalanand Saraswati.

 मंदिर वही सफल है जिसकी खुद की गोशाला हो- स्वामी गोपालानंद सरस्वती। 

दबंग देश । मनोज कुमार माली सुसनेर.

सुसनेर। जनपद पंचायत सुसनेर के समीपस्थ ग्राम ननोरा, श्यामपुरा, सेमली एवं सालरिया की सीमा में स्थित विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु आमजन में गो सेवा की भावना जागृत करने के लिए

 विगत 9 अप्रेल 2024 से चल रहें एक वर्षीय वेदलक्षणा गो आराधना महामहोत्सव के 42 वें दिवस पर गोकथा में पधारे श्रोताओं को ग्वाल सन्त गोपालाचार्य स्वामी गोपालानंद सरस्वती ने मंडपिया में विराजित सांवरिया सेठ की महिमा का वर्णन बताते हुए कहां कि शक्ति मूर्ति की नहीं होती

सुसनेर। जनपद पंचायत सुसनेर के समीपस्थ ग्राम ननोरा, श्यामपुरा, सेमली एवं सालरिया की सीमा में स्थित विश्व के प्रथम श्री कामधेनु गो अभयारण्य मालवा में निराश्रित गोवंश के संरक्षण हेतु आमजन में गो सेवा की भावना जागृत करने के लिए

 शक्ति भक्ति की होती है, और भोला गुजर की भक्ति के कारण आज दान की दृष्टि से विश्व में अपना प्रमुख स्थान बना चुका है और हर माह की अमावस्या को जब सांवरिया सेठ का दान पात्र  खुलता है तो वहां करोड़ों में विदेशी एवं भारतीय मुद्रा निकलती है 

और उस मुद्रा का उपयोग वहां विराजित गोवंश एवं शिक्षा व स्वास्थ्य पर खर्च होता है क्योंकि सावरिया सेठ के धाम मंडपिया में गोशाला, वेद विद्यालय एवं चिकित्सालय है। यानि *मंदिर वही सफल है जिसकी खुद की गोशाला हो।

    स्वामीजी ने बताया कि *सामान्य कर्म किस्मत बन जाता है और गौसेवा करो तो वह भाग्य बन जाता है* स्वामीजी ने खाटूश्याम जी महाराज के जन्म की कथा के बारे में बताते हुए कहां कि हिडिम्बा एक राक्षसी कुल से थी लेकिन उसके विचार सात्विक होने के कारण उनसे घटोत्कच्छ जैसे पुत्र को जन्म दिया 

और घटोत्कच्छ से बर्बरीक नामक बालक हुआ। बर्बरीक बचपन से ही ईश्वर भक्ति में लीन हो गया था और उसने मां भगवती की साधना करके शस्त्र विद्या में निपुर्णता प्राप्त कर ली थी और उसकी निपुर्णता को भांपते हुए भगवान कृष्ण ने विचार किया

 कि अगर बर्बरीक जैसे महाबली ने कौरव पक्ष की ओर से युद्ध किया तो जिस उद्देश्य से महाभारत हुआ है वह उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा और बर्बरीक से ब्राह्मण बनकर खुद का शीश मांग लिया।

 स्वामीजी ने दान की महत्ता के बारे में बताते हुए कहां कि खुद आकर चलाकर दान देना उत्तमदान की श्रेणी में आता है। बुलाकर दान देना मध्यम दान की श्रेणी में आता है और याचना के बाद दिया गया दान अधमदान की श्रेणी में आता है। दान की इतनी महत्ता है कि स्वयं भगवान को राजाबलि के यहां द्वारपाल बनना पड़ा। 

  42वें दिवस पर चुनरी यात्रा मध्य प्रदेश के देवास जिले के जामगोद के तिवारी परिवार की ओर सेएक वर्षीय गोकृपा कथा के 42 वें दिवस पर मध्यप्रदेश के देवास जिले की सोनकच्छ तहसील के जामगोद  ग्राम के तिवारी परिवार से जगदीश प्रसाद तिवारी के पुत्र राजा अभिषेक तिवारी अपने परिवार के साथ अपने ग्राम की कुशल मंगल कामना के लिए

 अभयारण्य परिसर में विशाल चुनरी यात्रा लेकर पधारे और कथा मंच पर पहुंचकर गोमाता को चुनरी ओढ़ाकर गोमाता का पूजनकर स्वामी गोपालानंद महाराज से आशीर्वाद लिया और अंत में सभी ने गो पूजन, गोपुष्ठि यज्ञ करके यज्ञशाला की परिक्रमा कर उसके बाद सभी ने गोव्रती महाप्रसाद ग्रहण किया।

कथा में हरियाणा पलवल से पचतत्त्व वैद्य आचार्य ब्रजमणि सहित, झारखंड,छत्तीसगढ़, राजस्थान एवं मध्यप्रदेश के जबलपुर से गोप्रेमी भाव से नियमित कथा श्रवण कर रहें है ।


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