ज्ञान से ध्यान में,ध्यान से भाव में,भाव में त्रिशुद्धि से भव का परिवर्तन होता है
मुनि श्री प्रणित सागर जी
इंदौर दबंग देश
त्रिशुधि की प्राप्ति विशुद्धता से होती है उसके बाद पंचम गति सिद्धालय की प्राप्ति होती है । त्रिशुधी पंचम गति प्राप्त करने के लिए श्रावक को पहले ज्ञान में परिवर्तन करना होगा ,ज्ञान में परिवर्तन से ध्यान में परिवर्तन होगा ,ध्यान में परिवर्तन करने से भाव में परिवर्तन होगा ,भाव में परिवर्तन करने से भव में परिवर्तन होगा ।
यह मंगल देशना वैशाली नगर इंदौर में आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी के परम प्रभावक शिष्य मुनि श्री प्रणीत सागर जी महाराज ने धर्म सभा में प्रकट की।सुभाष पाटनी देवेंद्र छाबड़ा सचिन अनुसार मुनिश्री ने आगे बताया कि ज्ञान में परिवर्तन लाने के लिए आपको ज्ञानियों के पास बैठना होगा
,ज्ञानियों के पास बैठने से ज्ञान मिलेगा अज्ञानियों के पास बैठने से ज्ञान नहीं मिलेगा क्योंकि जिसके पास जो होता है वही देता है ।वर्तमान में बच्चों के संस्कार नहीं होने पर चिंता व्यक्त कर मुनि श्री ने बताया कि पुरुषों और महिलाओं को विशेष प्रशिक्षण की जरूरत है क्योंकि जो शिक्षा दे रहे हैं
उसका परीक्षण ज्ञानियों के पास ही किया जा सकता है आजकल जिनवाणी के बजाय जनवाणी का ज्यादा प्रयोग हो रहा है मुनि श्री ने कहा कि जो कथनी और करनी है उसका परीक्षण जिनवाणी आगम से होगा जन वाणी मनवाणी से सांसारिक कार्य किया जाता है ज्ञानियों के पास दुकान पर विवाह की चर्चा नहीं होकर मोक्ष मार्ग की राह मिलेगी।
वर्तमान में श्रावक शब्द परिभाषा की व्याख्या की जरूरत है । सच्चे श्रावक खोजने पर भी नहीं मिलते हैं क्योंकि मनुष्य को श्रद्धा वान विवेकवान और क्रियावन होना चाहिए। घर के वातावरण में बच्चों में मातृ भाषा हिंदी के बजाय इंग्लिश में बात करने पर चुटकी लेते हुए मुनि श्री ने कहा की जो भारत की भाषा को प्रकट नहीं करते हैं भारत की भाषा की उपेक्षा करते हैं ,वास्तव में वह देश विरोधी है
इसलिए बच्चों को संस्कार की जरूरत है शल्य क्रिया ऑपरेशन करने के लिए आप डॉक्टर पर भरोसा करके शरीर सुपर्द कर देते हैं यहां तक की हस्ताक्षर भी करते हैं किंतु संत समागम में आपका भरोसा नहीं होता है उनकी बातों को आप चरितार्थ नहीं करते हैं वक्ता साधु भी तत्व को अंतरंग आत्मा में प्रवेश करने के लिए ज्ञान देते हैं
मुनि श्री ने बताया कि जिस प्रकार साधु दिन में चार बार स्वाध्याय सामाजिक प्रतिक्रमण करते हैं उसी प्रकार श्रावक को भी दिन में कम से कम एक बार स्वाध्याय करना चाहिए प्रवचन सभा में भी वक्ता को शास्त्र खोल कर प्रवचन करना चाहिए और श्रोता को भी शास्त्र खोलकर प्रवचन सुनना चाहिए ।इससे मनवाणी के बजाय जिनवाणी सुनने को समझने को मिलेगी।
मुनिश्री ने घर-घर पर जिन धर्म की पताका पचरंगी झंडे और जय जिनेंद्र घर में लिखने का की प्रेरणा दी ताकि दूर से ही घर का पता लगे कि इसमें जैन व्यक्ति निवास करता है। उल्लेखनीय है कि मुनि श्री के सानिध्य में सैकड़ों समाज जन धर्म का लाभ ले रहे हैं श्रीमती सरोज
, मधु संगीता,ने बताया दोपहर को छंद श्लोक व्याकरण का मुनि श्री द्वारा सूक्ष्मता से जटिल,गुढ विषयो को सरलता से समझा रहे हैं। प्रतिदिन निकट के उप नगरों कालोनियों द्वारा मंदिर जी में आगमन हेतु श्रीफल भेट कर निवेदन किया जा रहा है
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