350 साल पहले 50 घोड़ों से शुरू हुआ था मेला, आज देशभर से 3 हजार से अधिक आते हैं घोड़े More than 50 horses were introduced in the fair 350 years ago, today more than 3 thousand horses have come into the universe.

 350 साल पहले 50 घोड़ों से शुरू हुआ था मेला, आज देशभर से 3 हजार से अधिक आते हैं घोड़े

दबंग देश

बड़वानी से दिपक मालवीया:खेतिया के समीपवर्ती महाराष्ट्र के सारंगखेड़ा में दत्त जयंती पर 350 साल पहले मेला लगने की परंपरा की शुरुआत हुई थी। जिसमें मात्र 50 घोड़े शामिल हुए थे। आज इस मेले का लोगों को सालभर इंतजार रहता है। करीब 3 हजार से अधिक घोड़े देशभर से शामिल होते हैं। हर 3 से 4 करोड़ का कारोबार मेले में होता है।

बड़वानी से दिपक मालवीया:खेतिया के समीपवर्ती महाराष्ट्र के सारंगखेड़ा में दत्त जयंती पर 350 साल पहले मेला लगने की परंपरा की शुरुआत हुई थी। जिसमें मात्र 50 घोड़े शामिल हुए थे। आज इस मेले का लोगों को सालभर इंतजार रहता है। करीब 3 हजार से अधिक घोड़े देशभर से शामिल होते हैं। हर 3 से 4 करोड़ का कारोबार मेले में होता है।

 

घोड़े के लिए प्रसिद्ध इस मेले में हर साल चेतक उत्सव कराया जाता है। एक माह तक चलने वाले इस मेले में 6 से अधिक राज्यों के व्यापारी व बड़ी हस्तियां शामिल होकर घुड़सवारी के शौक को पूरा करते हैं। 
350 साल पहले 50 घोड़ों से शुरू हुआ था मेला, आज देशभर से 3 हजार से अधिक आते हैं घोड़े  More than 50 horses were introduced in the fair 350 years ago, today more than 3 thousand horses have come into the universe.

मेला समिति के अध्यक्ष जयपाल सिंह रावल ने बताया घोड़ा मेला सारंगखेड़ा गांव की पहचान बन चुका है। यहां पर मात्र 14 हजार लोगों की आबादी है लेकिन मेले में पूरे देश से लोग शामिल होते हैं। पहले छोटे से परिसर में प्राचीन दत्त भगवान का मेला लगता था। जो अब 14 एकड़ में फैल गया है।

 यहां पर मेले के पहले से घोड़ा व्यापारी अपने घोड़ों को बेचने के लिए पहुंच जाते हैं। इस मेले में 6 प्रदेश मप्र, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पंजाब व उप्र के व्यापारी खरीदी व बिक्री आते हैं। जो उच्च स्तरीय नस्ल के घोड़ों की लाखों रुपए में खरीदी कर ले जाते हैं।  

डांस व अपनी खुबसुरती से जीतेंगे पुरस्कार, 6 प्रजाति रहती है खासचेतक मेले को आकर्षक बनाने के लिए कुछ सालों से प्रतियोगिता शुरू की गई है। जिसमें घोड़े व्यापारी अपने घोड़े को शामिल कर राशि जितते हैं। साथ ही उनकी कीमत भी बढ़ती है। इसमें घुड़सवारी, डांस व खुबसुरती की प्रतियोगिता होती है। जिसमें वह अपनी अदाओं से लोगों को आकर्षित करते हैं। मेले में 6 प्रकार की प्रजाति के घोड़ों की खास डिमांड होती है। जिसमें नुक्खा, नुर्रा, मारवाड़ी, काट्यावाड़ी, मणीपुरी व भुटिया प्रजाति के घोड़ों की खास पहचान है। 

घोड़ों का बदला ट्रेड, बड़े के बदले कम आयु के घोड़ों की अधिक डिमांड हर साल में मेले में बड़ी आयु के घोड़ों की डिमांड रहती थी। जिसे व्यापारी अपने घर से ही तैयार करके लाते थे। जिसकी खुबसुरती व गठीला शरीर देखकर उसकी खरीदी करते थे लेकिन इस साल घोड़े खरीदी के ट्रेड में बदलाव आया है। जिसमें अब मात्र दो माह से 7 साल आयु के घोड़ों की खरीदी की जा रही है। ताकि खरीदार उसे अपने अनुसार तैयार कर सके। 

इसमें उन्हें घुड़सवारी, बग्गी, खुबसुरती व अन्य तरीकों के लिए तैयार कर पाएंगे। इसके लिए सबसे अधिक राजस्थान से 1 हजार घोड़े कम आयु के बिकने के लिए आए है। सारंगखेड़ा मेले में राजस्थान से गब्बर नाम का घोड़ा पहुंचा है। जो सफेद रंग व चमकीली आंख, हाइट और उच्च नस्ल के कारण चर्चा में बना हुआ है। उसे खरीदी के लिए रोजाना लोग बोली लगा रहे हैं।

Post a Comment

0 Comments