गांव की सुरक्षा के लिए सदियों से करते आ रहे दशहरा पर रावण की पूजा।
दशहरा पर्व नहीं मनाने पर गांव जलकर राख हो गया था तब से प्रतिवर्ष रावण की विशेष पूजा की जाती है।
सुनील कवलेचा/उमेश जैन
जिला मुख्यालय से महज 20 किमी दूर बड़नगर मार्ग पर स्थित एक गांव ऐसा भी है, जहां लोग दशहरा पर्व पर लंका नरेश रावण की पूजा करते हैं। गांव में सदियों पुरानी इस परंपरा में लोग मन्नत मांगते हैं, पूरी होने पर एक से लेकर 51 नारियल तक यहां चढ़ाने आते हैं।
हम बात कर रहे हैं जिले के गांव चिकली की, जहां अनूठी परंपरा है। यहां शारदीय नवरात्र के बाद दशहरे के दिन ग्रामीण रावण का दहन नही करते क्योंकि इस गांव की सदियों पुरानी परंपरा है जिसके चलते लंका नरेश रावण की पूजा करते हैं। गांव में सदियों पुराना अति प्राचीन रावण का मंदिर बना हुआ है वहीं चैत्र माह के दशहरे के दिन विशेष पूजन होता है और रामलीला के साथ एक दिवसीय मेला लगता है, जिसमें आसपास के गांवों से हजारों की संख्या में ग्रामीण पहुंचते हैं।
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पुजारी कैलाशचंद्र और ग्रामीणों ने बताया पहले रावण दरवाजे के सामने खुले मैदान में गोबर व मिट्टी से बनी प्रतिमा का पूजन होता था। चारदशक पहले उस स्थान पर लंकाधिपति रावण का मंदिर बनाकर उसमें10 फीट ऊंची पत्थर व सीमेंट से बनी प्रतिमा स्थापितकर दी गई। तब से यहां वे रोजाना इस प्रतिमा की पूजा-अर्चना करते हैं। दशहरे पर विशेष पूजा की जाती है, जिसमें बड़ी संख्या में ग्रामीण शामिल होते है। यहां पर रावण दहन नहीं पूजा कर मनाया जाता है दशहरा पर्वशारदीय नवरात्रि के बाद दशमी को पूरा देश रावण दहन कर दशहरा पर्व मनाता है। वहीं चिकली गांव में रावण का विधि विधान के साथ महा पूजन कर मनाया जाता है चैत्र माह में आने वाली नवरात्रि के बाद दशमी तिथि को जब कहीं भी रावण दहन नही होता लेकिन इस गांव में इस दिन दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। साथ ही एक दिवसीय मेला लगता है। शाम होते ही ग्रामीणजनों द्वारा गांव के प्रमुख मार्गों से भगवान राम, लक्ष्मण, सीता और हनुमान जी की सवारी निकाली जाती है। पश्चात रामलीला मंचन में हनुमानजी द्वारा लंका दहन किया जाता है और भगवान राम द्वारा प्रतीक स्वरूप गोबर से बनाए गए
रावण के मुखोटे को तीर से जमीन पर गिराया जाता है। मुखोटे के जमीन पर गिराने को लोग रावणवध मानकर दशहरा पर्व मनाते हैं।गांव की सुरक्षा के लिए की जाती लंका नरेश रावण की पूजाग्रामीणों ने बताया की हमारे पूर्वजों का कहना था की गांव में एक बार दशहरा पर्व पर रावण की पूजा अर्चना नहीं की गई थी उस वक्त गांव में भीषण आग लग गई थी, जिसमें पूरा गांव जलकर राख हो गया था। इसकेबाद गांव में किसी प्रकार की अनहोनी ना हो इसके लिए हर दशहरा पर्व पर रावण की पूजा की जाती है। ग्रामीणों का कहना है कि आज भी गांव के जलने के प्रमाण आसपास खुदाई होने पर सामने आते हैं, जिसमें कोयला और राख निकलती है।
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