नवरात्रि विशेषः-नलखेड़ा में सर्वसिद्वि मां बगलामुखी मंदिर पर पांडवों ने विपत्ति के समय की थी मां बगलामुखी की उपासना। माता ने प्रकट होकर विजय का दिया था आशिर्वाद।The Pandavas worshiped Maa Baglamukhi at the time of calamity at the Sarvasidvi Maa Baglamukhi temple in Nalkheda. Mother had appeared and blessed Vijay.

 नवरात्रि विशेषः- नलखेड़ा में सर्वसिद्वि मां बगलामुखी मंदिर पर पांडवों ने विपत्ति के समय की थी मां बगलामुखी की उपासना। माता ने प्रकट होकर विजय का दिया था आशिर्वाद।

नवरात्रि में देश विदेश से दर्शन करने पहुंचते है भक्तगण।

सुनील कवलेचा, अशोक परिहार दबंग देश आगर मालवा। 

आगर मालवा जिला मुख्यालय से महज 35 किमी की दुरी पर नलखेडा नगर में लखुन्दर नदी के तट पर मां बगलामुखी विराजमान हैं, जिनके एक और धन दायिनी महा लक्ष्मी और दूसरी और विद्या दायिनी महा सरस्वती विराजित हैं। ये मंदिर मां के भक्तों की आस्था का एक ऐसा मंदिर हैं, जहां मां के दर्शन मात्र से ही कष्टों का निवारण हो जाता है। मां बगलामुखी की यह प्रतिमा पीताम्बर स्वरुप की है। पीत यानि पिला, इसलिए यहाँ पीले रंग की सामग्री चढ़ाई  जाती है। पीला कपड़ा, पीली चुनरी, पीला प्रसाद, पीले फूल व फलों को मां को अर्पण किया जाता है। अनेक चमत्कारों में एक इस मंदिर की पिछली दीवार पर पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए महलाओं के द्वारा स्वस्तिक बनाने का प्रचलन भी है। मान्यता है कि इस विश्व विख्यात मंदिर में भक्तो की सभी मनोकामनाएं की पूर्ति यहां होती है। दुखों का निवारण यहां होता है। 

इन्हें भक्त वत्सला शत्रु नाशनी, नमो महाविद्या वरदानी,रिद्धि सिद्धि दाती, पिताम्बरा माँ के नाम से पुकारते हैं। मान्यता है कि महाभारत काल में यहीं से पाण्डवों को विजयश्री का वरदान प्राप्त हुआ था।

विश्व में तीन स्थानों पर विराजित हैं माँ बगलामुखी

माँ बगलामुखी की पावन मूर्ति विश्व में केवल तीन स्थानों पर विराजित हैं। एक नेपाल में और दूसरी मध्य प्रदेश के दतिया में और एक यहाँ  साक्षात नलखेडा में। कहा जाता है की नेपाल और दतिया में श्री श्री १००८ आद्या शंकराचार्य जी ने माँ  की प्रतिमा स्थापित की थी। जबकि नलखेडा में इस स्थान पर माँ  बगलामुखी पीताम्बर रूप में शाश्वत काल से विराजित हैं। प्राचीन काल में यहाँ बगावत नाम का गाँव हुआ करता था। यह विश्व शक्ति पीठ के रूप में भी प्रसिद्द है।

माँ बगलामुखी की उपासना और साधना से माता वैष्णोदेवी और माँ हरसिद्धि के समान ही साधक को शक्ति के साथ धन और विद्या की प्राप्ति हो जाती। सोने जैसे पीले रंग वाली। चाँदी के जैसे सफेद फूलो की माला धारण करने वाली, चंद्रमा के समान संसार को प्रसन्न करने वाली इस त्रिशक्ति का देवीय स्वरुप बरबस अपनी और आकर्षित  करता है।

पांडवों ने विपत्ति के समय की थी मां बगलामुखी की उपासना।

माँ बगलामुखी की इस विचित्र और चमत्कारी मूर्ति की स्थापना का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है। जानकारों का कहना है की यह मूर्ति स्वयं सिद्ध स्थापित है। मान्यता है कि यह अति प्राचीन स्थान हजारों साल पुराना है। महाभारत काल में पांडव जब विपत्ति में थे तब भगवान कृष्ण ने उन्हें माँ बगलामुखी के इस स्थान की उपासना करने के लिए कहा था। पांडवों ने इस त्रिगुण शक्ति स्वरूपा की आराधना कर विपत्तियों से मुक्ति पाई थी। अपना खोया हुआ राज्य वापस पाया था। पांडवों ने उपासना की थी तब एक चबुतरे पर मां विराजमान थी।

राजा विक्रमादित्य के शासन काल में मंदिर का किया था निर्माण 

मंदिर का मौजूदा स्वरुप करीब पंद्रह सौ साल पहले राजा विक्रमादित्य के काल में हुआ था। गर्भगृह की दीवारों की मोटाई तीन फीट के आस-पास है। दीवारों की बाहर की तरफ की गयी कलाकृति आकर्षक है। पुरातात्विक गाथा को प्रतिबिंबित करती नजर आती हैं। मंदिर के ठीक सामने 80 फीट ऊँची दीपमाला दिव्य ज्योत को अलंकृत करती हुई विक्रमादित्य के शासन काल की अनुपम निर्माण की एक और कहानी बयान करती है। मंदिर में 1600 खम्बों का सभा मंडप बना हुआ है। जो करीब 250 साल पहले बनाया गया था।

माता बगलामुखी की स्वयंभू मूर्ति है, धर्मराज युधिष्ठिर ने मंदिर बनवाया था

कम ही लोग जानते हैं कि महाभारतकाल में भगवान श्रीकृष्ण ने कौरवों के खिलाफ युद्ध में जीत के लिए पांडवों को पूजा करने का आदेश दिया था। जिसके बाद पांडवों ने यहां तपस्या की, फलस्वरूप यहां देवी शक्ति का प्राकट्य हुआ। माता ने पांडवों को कौरवों पर जीत का आशीर्वाद दिया था। पांडवों में बड़े भाई धर्मराज युधिष्ठिर ने माता का आशीर्वाद पाने के बाद यहां मंदिर का निर्माण किया। मान्यता यह भी है कि माता बगलामुखी की मूर्ति स्वयंभू है। बताया जाता है कि ईस्वी सन् 1816 में मंदिर का जीर्णाेद्धार किया गया।

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