जिन शासन गौरव उमेशमुनिजी की 93वीं जन्म जयंती तप आराधना से मनाई The 93rd birth anniversary of Jina Shasan Gaurav Umesh Muniji was celebrated with penance and worship

जिन शासन गौरव उमेशमुनिजी की 93वीं जन्म जयंती तप आराधना से मनाई

बच्चों को मोबाइल की जगह गुरुदेव का साहित्य दे - जयन्तमुनि

थांदला। नगर में पधारें अणु-जिनेन्द्र शिष्यों के सानिध्य व यहाँ विराजित महासतियों के पावन सानिध्य में जिन शासन गौरव, जैनाचार्य पूज्य उमेशमुनिजी म.सा. "अणु" की 93वीं जन्म जयंती तप आराधना के साथ मनाई। इस अवसर पर आयोजित गुणानुवाद सभा में अणुशिष्य प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनिजी के आज्ञानुवर्ती सरल स्वभावी पूज्य श्री जयन्तमुनिजी ने कहा कि थांदला तो सन्तों की भूमि है यहाँ से अनेक साधक आत्माओं ने अपने पुरुषार्थ से धर्म की प्रभावना की है। सभी साधकों की साधना अनुपम है। ऐसे में यहाँ धर्म के संस्कार होने के बाद भी साहित्य पढ़ने की रुचि प्रायः कम है। आज हम गुरुदेव को याद कर रहे है, उनके गुणों का स्मरण कर रहे है तो उनके आशीर्वाद रूप में पड़ा अनमोल साहित्य आज रत्नों के समान है।



 पूज्यश्री ने सबसे प्रश्न किया कि जैसे आपके पास रत्न का खजाना है व उसे कोई और ले जाये तो आपको कैसा लगेगा ..? बस ऐसे ही गुरुदेव का यह साहित्य रत्न के समान है, जिससे अन्य संघ समाज व सम्प्रदाय के लोग प्रेरणा पा रहे है लेकिन हममें ही गुरु साहित्य पठन की रुचि नही जागी ऐसे में हमारा कल्याण नही हो पायेगा। पूज्य श्री ने कहा कि हम अपने बच्चों को मोबाइल तो दे देते है लेकिन गुरुदेव का साहित्य नही देते इससे हम उनका भी भविष्य खराब कर रहे है। आपने कहा कि जैसे किसी व्यक्ति की निंदा करने से कर्मों क बंध होता है जबकि इससे विपरीत गुरुदेव जैसे महापुरुषों के गुणानुवाद से कर्मों का क्षय होता है। अब यदि हमें अपनी आत्मा का विकास करना है तो गुरुदेव के साहित्य का निरंतर पठन शुरू करें। आज से प्रण ले कि हम प्रतिदिन कम से ज

कम एक पेज तो अवश्य पढेंगें। उन्होंनें खासकर युवा वर्ग को प्रेरणा देते हुए कहा कि वे भी अपने दैनिक जीवन के काम व्यापार व्यवसाय के बाद इसकी शुरुआत करें व अपने समय का एक भाग तो अपने गुरु के लिए दे ही सकते है ऐसे में वे शाम या रात में गुरुदेव के साहित्य पठन कर सकते है। अपने कहा कि जैसे महिलाएं अपने बच्चों को गृहकार्य में लगाती है, पुरुष वर्ग व्यापार आदि बाहरी कार्य में लगाते है वैसे ही वे अपने बच्चों को धर्म कार्य में लगाएं आपने दोनों कार्य की तुलना करते हुए कहा कि सांसारिक कार्य तो सावद्य क्रिया के है इनसे पाप का ही अर्जन होता है जबकि धर्म से कर्मों का विघटन होता है जिससे जीव शांति पाता है। धर्म सभा में गुरुदेव से प्रेरणा पाकर अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने सामूहिक रूप से गुरुदेव के साहित्य पढ़ने के प्रत्याख्यान भी ग्रहण किये। इस अवसर पर धर्म सभा में पूज्यश्री जिनांशमुनिजी ने कहा कि संसार में पद, पैसा, परिवार महत्वपूर्ण नही है जबकि सबसे महत्वपूर्ण है चारित्र। यह संसार में भी महत्वपूर्ण है तो धर्म में इसकी उपयोगिता कही अधिक है। आज से ढाई वर्ष पहले मेरी बात न आप सुनते थे नही घरवालें ही सुनते थे लेकिन आज अहो भाव से आप मेरी बात सुन रहे हो यह चारित्र की महत्ता है। आपने कहा कि गुरुदेव भी संसार त्याग करने के बाद ही महापुरुष कहलाये। आपकी साधना में समस्त सावद्य योगों का त्याग रूप सबसे पहले सामयिक आई फिर पाँच महाव्रतों का आरोपण कर छेदोपस्थापनिय चारित्र में प्रवेश किया व अपनी निर्मल आराधना से हम सबके भगवान बन गए। पूज्यश्री ने कहा कि माता-पिता हमें बड़ा करते है, संस्कार देते हैं वैसे ही गुरु हमें चारित्र निर्मल बनाने के उपाय बताते है। आज गुरुदेव हमारें बीच नही है लेकिन प्रवर्तक श्री जिनेन्द्रमुनिजी सहित उनकी शिष्य परंपरा है जो समय-समय पर गुरुदेव के वचन व्यवहार को बता कर हमें आराधना के सही प्रकार बतला रहे है। आपने अपने जीवन का एक प्रसंग सुनाते हुए कहा कि उदयपुर में वे अन्य सम्प्रदाय के संतों के दर्शन करने गए थे तब वे भी गुरुदेव का नाम सुन अभिभूत हो गए व हमें दर्शन देते हुए प्रेरक जिनवाणी फ़रमाई यह उनके नाम का ही प्रभाव था जो आज आप-हम सब महसूस करते है व जब कि कठिनाई व मुश्किल घड़ियों में उनके नाम का स्मरण करते है - जय गुरु उमेश - जय गुरु उमेश का जाप करते है हमें शांति का अनुभव होने लगता है यह सब पुण्य प्रभाव उनके अनुपम ज्ञान आराधना की वजह से होता है। इस अवसर पर पूज्याश्री निखिलशीलाजी म.सा. ने भी गुरुदेव का पुण्य स्मरण करते हुए उपकारी गुरुवर की गुणगाथा गाते हुए कहा कि फाल्गुन विदी अमावस्या को दुनिया में अनेक लोगों ने जन्म लिया होगा लेकिन जो अपने पुरुषार्थ से विशिष्ट कार्य करते है वही वीर कहलाते है व उनको जमाना याद करता है। 

गुरुदेव ने तो संयम लेने से पहले ही लेखक-कवि-पंडित के रूप में प्रसिद्धि पा ली थी किंतु दादा गरूदेव प्रवर्तक पूज्यश्री सूर्यमुनिजी के निकटता के बाद उनका जीवन संयम में रूपांतरित हो गया व वे हम सबके आराध्य बन गए। आपने कहा कि गरूदेव सम्मान-अपमान हर परिस्थिति में निस्पृह रहें व ऐसे ही अनेक गुण उनको महान बनाते है। आपका अनमोल साहित्य आज हम सबके ज्ञान का आलम्बन बन कर साधना हमारी साधना को निर्मल बना रहा है। पूज्याश्री दीप्तिजी म.सा. ने जन्मदिन मंगलम स्तवन के माध्यम से गुणानुवाद सभा का शुभारंभ किया वही गुरुभगवंतों के गुणानुवाद के पश्चात अणु आराधना मण्डल ने छम-छम बाजे पालनिया स्तवन के माध्यम से गुरुदेव को याद किया। श्रीसंघ अध्यक्ष भरत भंसाली ने संघ पर गुरूदेव के उपकारों को याद करते हुए उनकी अनुपम साधना का वर्णन किया। सभा का संचालन संघ सचिव प्रदीप गादिया ने व ललित जैन नवयुवक मंडल अध्यक्ष रवि लोढ़ा ने आभार माना।

गुरु भगवंत की जन्म जयंती पर विशेष आराधना

थांदला गौरव पूज्य श्रीउमेशमुनिजी के जन्म जयंती के साथ पक्खी पर्व का दोहरा प्रसंग होने से संघ में आज का दिन जैन संघ के लिए खास बनकर आया जानकारी देते हुए संघ प्रवक्ता पवन नाहर, अणु संयत समिति संचालिका स्वीटी जैन, गरिमा श्रीश्रीमाल ने बताया कि आज वर्षीतप आराधकों के साथ अन्य आराधकों ने भी उपवास तप की आराधना की वही अणु संयत समिति द्वारा 12 घन्टें के नवकार महामंत्र के जाप व पाँच-पाँच सामयिक करने का लक्ष्य दिया गया जिसमें शामिल सभी आराधकों को उनकी तरफ से प्रभावना प्रदान की गई। पूज्याश्री निखिलशीलाजी की प्रेरणा से अनेक आराधकों ने गरूदेव की 93वीं जन्म जयंती होने से 93 दिनों तक तप-त्याग के विविध व्रत नियम ग्रहण किये। श्रीसंघ द्वारा सभी उपवास तप आराधकों के पारणें वर्षीतप आराधकों के साथ महावीर भवन पर करवाये जायेंगें। इस अवसर पर स्व. समरथमल चौरड़िया की स्मृति में चौरड़िया परिवार ने समस्त वर्षीतप आराधकों के बियासना व शाम के भोजन का लाभ लिया गया।

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