धर्म का संबंध मानव के शरीर से नहीं बल्कि चेतना से है : साध्वी प्रभावती जी । Religion is not related to human body but to its consciousness: Sadhvi Prabhavati ji.

 धर्म का संबंध मानव के शरीर से नहीं बल्कि चेतना से है : साध्वी प्रभावती जी ।

   महाराणा प्रताप जयंती के उपलक्ष्य में ग्राम डींगरोदा में हुआ आध्यात्मिक समारोह

राधेश्याम देवड़ा । दबंग देश.

धर्म वह वस्तु है,जिसकी रक्षा करने से समाज की रक्षा होती है। धर्म मात्र पूजा-पाठ या स्नान-ध्यान, मंदिर दर्शन,तीर्थ यात्रा,अनुष्ठान जैसे कर्मकांडों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के उन शाश्वत सिद्धांतों को जीवन में धारण करना धर्म है, जिससे मनुष्य में देवत्व का उदय होता है। 

धर्म वह वस्तु है,जिसकी रक्षा करने से समाज की रक्षा होती है। धर्म मात्र पूजा-पाठ या स्नान-ध्यान, मंदिर दर्शन,तीर्थ यात्रा,अनुष्ठान जैसे कर्मकांडों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जीवन के उन शाश्वत सिद्धांतों को जीवन में धारण करना धर्म है, जिससे मनुष्य में देवत्व का उदय होता है।

सत्यनिष्ठा, प्रेम, न्यायनिष्ठा, सादगी,सज्जनता, परोपकार जैसे सद्गुणों को व्यक्तित्व में धारण करना धर्म है। देव दर्शन, यज्ञ, तीर्थ यात्रा, उपासना, सेवा जैसे कर्मकाण्ड इन्हें धारण करने की प्रेरणा ग्रहण करने के और उनका अभ्यास करने के साधन है। इनके सतत अभ्यास से व्यक्ति धर्मनिष्ठ होता जाता है।

 धर्मो के चिन्ह भले ही अलग-अलग हो, लेकिन सब धर्मो की आत्मा एक ही है। धर्म प्रवर्तक भले ही भिन्न-भिन्न हो, पर सब की मूल शिक्षाएं एक ही है। धार्मिक व्यक्ति वे हैं, जो चिन्हों व प्रवर्तकों के लिए नहीं लड़ते, बल्कि उनकी मूल शिक्षाओं को ग्रहण कर अपनी आत्मा का विकास करते हैं।

   उक्त धर्म संदेश अखिल भारतीय सामाजिक व आध्यात्मिक संस्था 'मानव उत्थान सेवा समिति' द्वारा महाराणा प्रताप जयंती के उपलक्ष में ग्राम डींगरोदा के श्री राम मंदिर परिसर में आयोजित रात्रि कालीन सत्संग समारोह में श्री सतपाल जी महाराज की शिष्या प्रभावती जी ने व्यक्त किए। 

उन्होंने कहा धर्म का संबंध मानव के शरीर से नहीं बल्कि चेतना से है। बौद्धिकता से नहीं अपितु हृदय से है। हिंदू या मुसलमान से नहीं वरन् मानव से है। अध्यात्म ही राष्ट्रीय एकता एवं सांप्रदायिक सद्भाव का मूल आधार है। समाज में शांति,एकता और परस्पर सद्भाव की स्थापना ही मानव धर्म का उद्देश्य है। 

बड़ी संख्या में उपस्थित धर्म प्रेमियों को साध्वी जी ने ज्ञान-भक्ति, वैराग्य से ओतप्रोत मधुर भजन सुनाते हुए कहा हमारा आचरण और कर्म धर्ममय होना चाहिए। धर्म धारणा से मनुष्य में देवत्व का उदय होता है। मनुष्यों से ही समाज बनता है। 

धर्म की रक्षा तभी संभव है जब समाज का हर व्यक्ति धर्म की, सिद्धांतों की रक्षा करने लगे। आज संसार में जितनी भी कष्ट-परेशानियां हैं,वे इसलिए हैं कि लोग धर्म को ताक पर रखकर केवल चिन्ह पूजा करने लगे हैं।

    इस मौके पर उपस्थित महात्मा श्री हर्षानंद जी ने महाराणा प्रताप के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा महाराणा प्रताप का त्याग व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। आज हमें उनके बताए हुए मार्ग पर चलने का संकल्प लेना है। कार्यक्रम की शुरुआत में समाजसेवी सूरज सिंह राजपूत,शुरु काका,

 कमलसिंह पटेल,पुजारी कालुसिंह, जगदीश जाधव,भुरुलाल वर्मा, समिति के राधेश्याम प्रजापत,गीता बहन आदि ने संतों का पुष्पमालाओं से हार्दिक स्वागत किया। विश्व-शांति की प्रार्थना, आरती-प्रसाद वितरण के साथ कार्यक्रम का समापन किया गया।

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