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विश्व कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति का अभ्युदय हो रहा है-श्री मांगरोदा Indian culture is emerging for the welfare of the world – Shri Mangroda

 विश्व कल्याण के लिए भारतीय संस्कृति का अभ्युदय  हो रहा है-श्री मांगरोदा 

मालवा विचार मंथन " के सात दिवसीय आयोजन  का हुआ समापन।

नाहरू मोहम्मद | दबंग देश जावरा .

1500 वर्षों के संघर्षों के पश्चात भी  भारत की मूल भावना लाखों वर्षों पश्चात भी विद्यमान है और उसका मूल विचार भी कायम है ‌‌। यही भारतीय संस्कृति का उजला स्वरूप है, जिसने भारत की आत्मा को जिंदा रखा और आज उसका अभ्युदय विश्व कल्याण की भावना के साथ हो रहा है। 

  उपरोक्त विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के रतलाम विभाग संघचालक तेजराम मागरोंदा ने समग्र मालवा- अटल ग्राम विकास सामाजिक संगठन के  " मालवा विचार मंथन " के 7 जून से चल रहे सात दिवसीय आयोजन के समापन अवसर पर 14 जून को श्रीराम विद्या मंदिर में " भारत का सांस्कृतिक अभ्युदय " विषय पर बोलते हुए व्यक्त किये। 

1500 वर्षों के संघर्षों के पश्चात भी  भारत की मूल भावना लाखों वर्षों पश्चात भी विद्यमान है और उसका मूल विचार भी कायम है ‌‌। यही भारतीय संस्कृति का उजला स्वरूप है, जिसने भारत की आत्मा को जिंदा रखा और आज उसका अभ्युदय विश्व कल्याण की भावना के साथ हो रहा है।

श्री मांगरोदा ने कहा कि मंथन करने वाले सीमित लोग होते हैंऔर शासन तथा समाज उसे विस्तार प्रदान करता है ।जनता के बीच में विचार जाना चाहिए, विचारों से ही देश चलता है। आपने कहा कि राष्ट्र है तो संस्कृति होती है। 

भारत को धर्मनिरपेक्ष देश का जामा पहनाने का प्रयास किया गया लेकिन भारत का दर्शन और उसकी परंपराएं भारत के लाखों वर्षों की संस्कृति से जुड़ी हुई है ।आपने कहा कि भारत में 2000 से अधिक वृत, त्योहार  और उत्सव मनाये जाते हैं जिसमे भारत की सनातन हिंदू संस्कृति के ही दर्शन होते हैं। 

 श्री मांगरोदा ने कहा कि राष्ट्र भूमि नहीं अपितु वहां के नागरिक होते हैं । जिस प्रकार परिवार का केंद्र मां होती है इसी प्रकार मातृभूमि भी पवित्र होती है। पश्चिम में राष्ट्र सेना ,प्रशासन और राजा से जाना जाता है परंतु साझा विचारों की अनुभूति ही राष्ट्र का निर्माण करती है।

   श्री मांगरोदा ने लगभग 75 मिनिट के अपने उद्बोधन मे अनेक प्रसंगों को उद्धृत करते कहा की भारत की आत्मा ही उसकी संस्कृति है ।इसीलिए भारत की विश्व में अनूठी पहचान है ,भारत की संस्कृति सनातनी है और वेद, पुराण, आगम सहित सभी धर्म ग्रंथो में इसी के दर्शन होते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार एवं लेखक  रमेश मनोरा ने करते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति का लंबा इतिहास है जब आदमी अपने आपको भगवान समझने की भूल करता है तभी ईश्वर का अवतार होता है। आपने कहा कि भारतीय संस्कृति विश्व में अनूठी है जो समर्पण भाव का दर्शन कराती है। 

अतिथियों द्वारा मां सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया। इस अवसर पर संस्था प्रमुख अभय कोठारी एवं कार्यक्रम संयोजक  जगदीश उपमन्यु ने तिलक लगाकर एवं दुपट्टा पहनाकर अतिथियों का स्वागत किया ‌। कार्यक्रम का संचालन  मनोहर सिंह चौहान मधुकर एवं आभार प्रदर्शन महासचिव महेश शर्मा ने व्यक्त किया।

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