नवरात्रि का प्रथम दिवस माता शैलपुत्री की कथाडॉStory of Mother Shailputri on the first day of Navratri

 नवरात्रि का प्रथम दिवस माता शैलपुत्री की कथाडॉ

 राजेश कुमार शर्मा पुरोहित

   नवरात्रि के प्रथम दिन हम माता दुर्गा के प्रथम स्वरूप माँ शैलपुत्री का पूजन अर्चन करते हैं। पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेने से माँ का नाम शैलपुत्री हो गया। योगी इस दिन मन को मूलाधार चक्र में  स्थित करते हैं। इस दिन से योग साधना प्रारम्भ करते हैं।

  माँ शैलपुत्री का दिव्य स्वरूप है बृषभ इनका वाहन है। वृषभ की माँ शैलपुत्री सवारी करती है।इनके दाहिने हाथ मे त्रिशूल है जो तीनों ताप हर लेता है।बाएं हाथ मे कमल पुष्प है।

नवरात्रि का प्रथम दिवस माता शैलपुत्री की कथाडॉStory of Mother Shailputri on the first day of Navratri

   माँ शैलपुत्री पूर्व जन्म में प्रजापति राजा दक्ष की कन्या थी।

पौराणिक कथा है कि दक्ष ने बड़ा यज्ञ का आयोजन किया जिसमें उसने देवी देवताओं सहित सभी को आमंत्रित किया लेकिन जान बूझकर शंकर भगवान को आमंत्रित नहीं किया। देवी सती ने शंकर जी से बार बार आग्रह किया कि मैं अपने पिता के घर जाना चाहती हुन। वे अपनी माता व बहनों से मिलना चाह रही थी। शंकर जी बोले देवी वहाँ हमारा कोई निमंत्रण नहीं आया। वहाँ जाना श्रेयस्कर नहीं ह

  सती के बार बार कहने पर शंकर जी ने आज्ञा दे दी। सती जी दक्ष के महलों में गई। लेकिन वहाँ उनसे किसी से बात तक नहीं की। जब सती ने अपने पति को निमंत्रण क्यों नहीं भेजने की बात पूछी तो दक्ष ने शंकर भगवान का अपमान किया। अपने पति का अपमान सुन पार्वती योगाग्नि के बल पर यज्ञ वेदी में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। 

  शैलराज हिमालय की पुत्री सती ही  हिमवती कहलाई। हेमवती स्वरूप से देवताओं के गर्व का इन्होंने भजन किया।

   शैलपुत्री मनोवांछित फल प्रदान करती है।इन्हें सफेद रंग की वस्तुएं प्रिय हैं।इसलिए नवरात्रि के पहले दिन माँ को सफेद पुष्प व सफेद वस्त्र चढ़ाना चाहिए।इनकी पूजा से कन्याओं को उत्तम वर की प्राप्ति होती है।शैल का अर्थ होता है पत्थर यानी दृढता का प्रतीक है शैलपुत्री माँ। इनके पूजन से जीवन मे स्थिरता व दृढ़ता आती है।

  वन्दे वंछितलाभाय चन्द्र अर्धकृत शेखराय वृष आरुढाय शूलधरां शैलपुत्री यशस्विनी।

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