राष्ट्र की प्राण-वायु है, हिंदी Hindi is the lifeblood of the nation.

राष्ट्र की प्राण-वायु है, हिंदी

लेखक - राजकुमार बरूआ भोपाल

    मनुष्य को जीवित रहने के लिए वायु की जरूरत है ठीक उसी प्रकार राष्ट्र की प्राण-वायु है हिंदी। हिंदी सिर्फ एक भाषा ही नहीं मां और आत्मा की आवाज़ है। हम अधिकतर भारतीय अपनी दिनचर्या का अधिकतर काम या संवाद हिंदी में ही करते हैं हिंदी को हम महसूस करते हैं और अपनेपन का एहसास भी, हिंदी के बिना भाषा की कल्पना ही नहीं की जा सकती। हिंदी हमारे सपनों की हमारे अपनों की भाषा है, हमारे घरों और गांवों में तो आज भी पालतू जानवरों से भी हम अपनी मातृभाषा हिंदी में ही बातें करते हैं, जब उनसे हम बातें करते हैं तो उनके प्रति प्रेम और बढ़ जाता है क्योंकि हमारे पालतू जानवर भी हमारी भाषा को समझते हैं और अपना प्रेम अपनी शारीरिक भाषा से देकर अपना प्रेम प्रकट करते हैं। हिंदी,आज विश्व में हिंदी का मान दिन प्रतिदिन बढ़ रहा है,आज विदेश में भी कई महाविद्यालय और विद्यालय भाषा के रूप में हिंदी चुनने का आपको अधिकार देते हैं यह हिंदी के प्रति विदेशों में बढ़ती लोकप्रियता ही है जो लोगों को हिंदी के प्रति आकर्षित कर रही है और हिंदुस्तान के प्रति भी। एकता की भाषा है हिंदी, हिंदी के अंदर सभी भावों को स्पष्ट रूप से कहने के लिए कई शब्द होते हैं, उन शब्दों में आत्मीयता की झलक होती है, जो मनुष्य को मनुष्य से जोड़कर उनके आपसी लगाव के साथ एक राष्ट्र को मजबूत करने के लिए जरूरी है और वह काम हिंदी बहुत ही सरलता से सहजता से कर रही है। भारतीय संस्कृति कि पूरे विश्व में एक अलग ही पहचान है सम्मान है और इसकी मुख्य वजह हिंदी भाषा की प्रमुखता ही है हिंदी में हम सोच पाते हैं समझ पाते हैं, बोल पाते हैं, महसूस कर पाते हैं और अपने सपनों को भी हम हिंदी में ही देखते हैं ना कि किसी और भाषा में, वैसे तो हमारे देश में कई भाषाएं हैं प्रदेशों में भी कुछ क्षेत्रीय भाषाएं भी पर जो सबसे ज्यादा बोले जाने वाली भाषा है या यूं कहें लोगों को आपस में जोड़कर रखने की भाषा वह है हिंदी। हिंदी सिर्फ भाषा ही नहीं राष्ट्र को एक सूत्र में पिरोकर रखने वाली माला भी है। भारतीय संविधान में भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है, संविधान के अनुच्छेद 343 और 351 के तहत बने इस कानून में कहा गया है कि हिंदी भारत की राजभाषा के तौर पर तो रहेगी इसे तब राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं दिया गया है। 

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हिंदी को राजभाषा का दर्ज 14 सितंबर 1949 को मिल तो गया, मगर हम आज भी अपनी राष्ट्रभाषा के लिए तरस रहे, महात्मा गांधी ने कहा था वह राष्ट्र गूंगा होता है जिसकी कोई राष्ट्रभाषा नहीं होती, वर्तमान समय में या यू कहे कि आधुनिक और इंटरनेट कि इस दुनिया में हिंदी ने अपने स्थान को और बेहतर किया है लोग हिंदी से और हिंदुस्तान से जुड़कर इसको समझ रहे हैं और इसे अपनाकर इसके प्रचार और प्रसार से भी जुड़कर अलग-अलग देश में इसका मान बढ़ा रहे हैं हिंदी के प्रचार-प्रसार में हिंदी सिनेमा का भी एक महत्वपूर्ण स्थान रहा है आज हिंदी सिनेमा को दुनिया के कई देशों में पसंद किया जाता है और इसकी मुख्य वजह हिंदी भाषा ही है। अब तो शिक्षा के क्षेत्र में भी हिंदी ने अपना मान और सम्मान दोनों ही पा लिया है, मध्य प्रदेश में भी एमबीबीएस की पढ़ाई अब हिंदी में होने लगी है, और भी कई राष्ट्रीय मुख्य परीक्षाएं भी अब हिंदी में होने लगी हैं जो छात्रों की अपनी भाषा होने के साथ ही उन्हें आसानी से उत्तम स्थान दिलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। वर्तमान समय राजनीतिक दृष्टि से भी अति उत्तम है कि हम हिंदी को अपनी राष्ट्रभाषा के तौर पर स्थापित कर हम भारतीय के गौरव को और बढ़ाएं, हिंदी को अब वैश्विक स्तर पर भी व्यापार की भाषा बनाने के लिए यह कदम बहुत जरूरी तो है साथ ही में विदेश में काम कर रहे हम भारतीयों के लिए भी व्यापार के नए रास्ते खोलने के लिए उपयोगी सिद्ध होगा।

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