प्यार, आस्था और समर्पण का प्रतीक है करवा चौथ का व्रत Karva Chauth fast is a symbol of love, faith and dedication.

प्यार, आस्था और समर्पण का प्रतीक है करवा चौथ का व्रत


करवा चौथ व्रत हर वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर किया जाता है. ये व्रत सूर्योदय से पहले शुरू होता है जिसे चांद निकलने तक रखा जाता है. इस व्रत में सांस अपनी बहू को सरगी देती है. इस सरगी को लेकर बहु अपने व्रत की शुरुआत करती हैं. इस बार करवा चौथ रोहिणी नक्षत्र में हो, जो अत्यंत शुभ माना जाता हैं।


पति-पत्नी के प्यार और विश्वास के प्रतीक करवाचौथ का व्रत प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी धूमधाम से मनाने की तैयारी में जुटी हैं सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत धारण कर अपने प्रेम के प्रति समर्पण भाव को व्यक्त करती हैं वहीं शाम होते सोलह श्रृंगार के साथ प्रत्येक महिला भगवान शिव की पूजा अर्चना कर अपने पति की दीर्घायु की कामना करते हुए चंद्रमा को अर्घ्य देने की तलाश में घर की छतों पर अपने परिवार जनों के साथ चंद्र देवता का इंतजार करती हुई दिखाई देते हैं यह पर्व पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ में मनाया जाता है ।

इस दिन महिलाएं विशेष रूप से श्रृंगार पर ध्यान रखते हैं तथा सुहागिन महिलाएं अपने सुहाग की दीर्घायु के लिए इस व्रत को धारण करती हैं आधुनिक काल में इस व्रत को कुंवारी लड़कियां भी अच्छे वर प्राप्ति के लिए धारण कर सकती है। पति की दीर्घायु की कामना के लिए सुहागिन तो व्रत रखती ही हैं लेकिन जीवन संगिनी के लिए पति भी साथ के लिए निभाने से पीछे नहीं है। कुछ पति ऐसे भी हैं जो पत्नियों के लिए उपवास रखना बेहद खास मानते हैं और वर्षों से उनके साथ निर्जल व्रत रखते आ रहे हैं।

हिंदू धर्म के अनुसार, करवाचौथ का व्रत सभी शादीशुदा महिलाओं के लिए रखना बेहद जरूरी होता है. ऐसा माना जाता है कि, जो भी शादीशुदा महिला करवाचौथ का व्रत रखती है, तो उसके पति की आयु लंबी होती है. यानि करवाचौथ का व्रत महिलाएं पति की लंबी उम्र और अच्छे स्वास्थ्य के लिए रखती हैं. वहीं दूसरी ओर यह भी माना जाता है कि, इस व्रत को रखने से शादीशुदा जीवन में आनंद और खुशहाली आती है।

सारिका ठाकुर "जागृति"

ग्वालियर (मध्य प्रदेश)




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