वोटों की फसल पर किसका हक ,कौन कटेगा फसल ?Who has the right on the harvest of votes, who will reap the harvest?

वोटों की फसल पर किसका हक ,कौन कटेगा फसल ?

भारतीय किसान ही नहीं बल्कि भारतीय खिलाड़ी भी अभिनंदन के पात्र हैं। ये दोनों देश का अभिमान बढ़ाने के लिए लगातार काम करते है। क्रिकेट के विश्व कप में भारतीय खिलाड़ी भारतीय विपक्ष की तरह लगातार विजय पथ पर आगे बढ़ रहे हैं। आज का दिन भारतीय क्रिकेटरों को बधाई देने का दिन है। लेकिन क्रिकेटरों की उपलब्धि का आनंद देश ले नहीं पा रहा,क्योंकि जब वे जीत पर जीत दर्ज करा हैं तभी देश के पांच राज्यों में वोटों की फसल काटने का मौसम आ गया है। नेताओं में इस लहलहाती फसल को काटने की होड़ लगी है लेकिन खेतों में उतरने का साहस केवल कांग्रेस के राहुल गांधी ही दिखा पाए हैं।

वोटों की फसल पर किसका हक ,कौन कटेगा फसल ?Who has the right on the harvest of votes, who will reap the harvest?


देश के जिन पांच राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं उनमें से केवल एक मध्यप्रदेश में केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की सरकार है। ये सरकार भी जनादेश की सरकार नहीं है। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है । तेलंगाना में कांग्रेस और भाजपा दोनों की सरकार नहीं है और मिजोरम में भाजपा के मित्रों की जो सरकार है उसके मुख्यमंत्री माननीय प्रधानमंत्री जी के साथ मंच साझा नहीं करना चाहते। लेकिन वोटों की फसल सभी पांच राज्यों में लहलहा रही है। इस फसल को काटने के लिए नेताओं के हाथों में आश्वासनों के हासिये हैं ,दरातियाँ हैं। लेकिन खेतों में कूदने का साहस नहीं है । सब खेत की मेंड़ों पर खड़े-खड़े फसल को हथियाना चाहते हैं। अपने दो दिवसीय दौरे के तहत छत्तीसगढ़ पहुंचे कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने रविवार को रायपुर के कटिया गांव का दौरा किय। राहुल गांधी ने यहां के किसानों के साथ मिलकर धान की कटाई की और उनसे बातचीत भी की।

वोटों की फसल काटने के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी समय से पहले छत्तीसगढ़ जा चुके हैं। लेकिन अब जब उनकी जरूरत छत्तीसगढ़ भाजपा को है तब वे गुजरात में हैं। मोदी जी ने छग समेत दूसरे सभी राज्यों में फसल काटने की जिमेवारी अब अपनी टीम को सौंप दी है । लेकिन दुर्भाग्य ये है कि इन नेताओं को राहुल गांधी की तरह खेतों में उतरना और हंसिया चलना नहीं आता। पिछले दस साल में सरकारी पार्टी के नेता जमीन से कट कर हवा-हवाई हो चुके है। वे पगड़ियां बंधवाते हैं लेकिन खुद बाँध नहीं पाते । वे किसानों,मजूरों के मन की बात सुनने के बजाय अपने मन की बात सुनाते हैं वो भी खेतों पर जाए बिना। वे जरूरत पड़ने पर खेतों को ,किसानों को ,मजूरों को अपने पास बुलाने का माद्दा रखते हैं। किसान जब दिल्ली में आंदोलन कर रहे थे तब उनसे बात करने के बजाय सरकार ने किसानों को कच्छ के तम्बुओं में बुला लिया था। सफाई कर्मियों से बात करने के लिए कोई गटर तक नहीं गया बल्कि सफाई कर्मी ही नेताओं के घर बुला लिए गए।

राजनीतिक दल जब भी सत्ता में आते हैं,अगले मौसम के लिए वोटों की फसलें बोते हैं ,लेकिन हर बार फसल मन माफिक नहीं आती । मध्यप्रदेश और छग में भाजपा ने लगातार तीन बार वोटों की फसलें काटी थीं लेकिन 2018 में ये फसल कांग्रेस के हिस्से में आयी। 2020 में मध्यप्रदेश में वोटों की कटी-कटाई फसल से लदी बैलगाड़ियां भाजपा ने बीच रस्ते में लूट कर सत्ता पर कब्जा कर लिया लेकिन अबकी भाजपा के लिए मध्य्प्रदेश की फसल बचाना कठिन हो रहा है । राजस्थान और छग की फसलों के बारे में तो सोचने में भी भाजपा के नेताओं को पसीना आ रहा है। मध्यप्रदेश में वोटों की लहलहाती फसल देखकर ललचा रहे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह तो नौकरशाही को ही हड़काने पर आमादा है। वे भूल गए कि विनाश काल में सबसे पहले बुद्धि व्यक्ति से विपरीत कार्य कराती है।

भारत के तमाम किसान अभी ऐसे किसी डिजटल प्लेटफार्म पर नहीं हैं जहां नेताओं की लिखी पोस्ट को वे पढ़ सकें । राहुल गांधी इसीलिए जो बात एक्स पर लिखते हैं उसे बताने किसानों के बीच खेतों तक भी जा रहे है। हालाँकि उनका खेतों में हसिया लेकर उतरना और धान काटना लगान फिल्म के सीन जैसा लगता है लेकिन उसमें असलियत दिखाई देती है। नए दौर की सियासत में अभिनय एक अनिवार्य कौशल है । मोदी जी का इस मामले में कोई मुकाबला नहीं था लेकिन अब राहुल गांधी भी उनसे इक्कीस साबित हो रहे है। वोटों की फसल काटने के लिए यदि अभिनय से ही काम चलना है तो फिर मोदी जी और उनकी टीम का तो बड़ा गर्क होता दिखाई दे रहा है। केवल मध्य्प्रदेश में उनके पास एक अभिनेता शिवराज सिंह चौहान है। लेकिन एक बेचारा क्या कर सकता है ?

देश का सौभाग्य है कि देश के पास लेम्प पोस्ट के नीचे पढ़कर प्रधानमंत्री पद तक पहुँचने वाले लाल बहादुर शास्त्री के बाद ऐसा दूसरा व्यक्ति प्रधानमंत्री है जो चाय बेचता था। लेकिन चाय बेचने का अनुभव ज्यादा काम नहीं आया । चाय का एक सत्र ही ठीक चला । दूसरे सत्र में चाय की मिठास गायब होने लगी और अब तीसरे सत्र में कोई चाय पर चर्चा ही नहीं करता। स्टेशन पर चाय बेचने वाला जन-जन का प्रिय वयक्ति अब बड़े-बड़े सेठों के साथ मिलाकर ' स्टारबक्स ' जैसी ब्रांडेड चाय के कारोबार में उतर गया दिखाई दे रहा है। उसके ऊपर चाय के साथ न जाने क्या-क्या बेचने का आरोप है ,लेकिन एक का भी जबाब जनता के बीच नहीं आया। बेचारे के पास अब पुरानी ड्रेस तक नहीं रही जो अक्सर चाय बेचने वाले पहना करते थे । जिनसे उनकी पहचान थी ।

इस बार मुकाबला खेतों-खिलाहनों के किसानों और मंदिरों में घंटा बजाने वाली भीड़ के बीच है। अब देखना है कि वोटर मंदिर पाकर फ़िदा होते हैं या कांग्रेसी पंजीरी खाकर। आयुष्मान योजना के पांच लाख रूपये के स्वास्थ्य बीमा को चुनते हैं या राजस्थान के 25 लाख रूपये के स्वास्थ्य बीमा को। लोग इस बार डिब्बा बजायेंगे या डिब्बा गोल करेंगे ये कहना कठिन है। विसंगति ये है कि सरकारी पार्टी के नेताओं का साथ ईडी और सीबीआई के हथियार भी नहीं दे रहे है। केरल में हुया दुर्भाग्यपूर्ण विस्फोट भी एनआईए के काम करने के पहले ही फुस्स हो गया । विस्फोट करने वाला खुद सामने आ गया । इसलिए विस्फोट का दोष आईएनडीआईऐ [इंडिया] के सिर नहीं मढ़ा जा सका। उमा भर्ती के हिमालय गमन ने नारी शक्ति वंदना की हकीकत उजागर कर दी।

बहरहाल धान के खेतों से भीनी-भीनी खुशबू उठ रही है । आगामी 3 दिसंबर तक धान काटकर गोदामों तक पहुँच जाएगी । किसके हिस्से में क्या आया ,जल्द पता चल जाएगा । अभी तो ' तेल देखिये और तेल की धार ' देखिये । पूर्बिया हवा पछाह तक आती है या नहीं ?

@ राकेश अचल

achalrakesh1959@gmail.com

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