रंग पंचमी विशेष : पलाश के फूलों से मनाएं हर्बल होली
जंगल की आग" कहलाने वाला पलाश पर मंडराने लगा संकट
सिंघाना से चेतन जिराती
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिंदूरी ये एक लोक गीत हे, ये जब याद आता है जब मनावर से धार जाना हो या धार से माडव, तप तपाती धूप में सुन सान पहाड़ी वाला रास्ता है लेकिन केशव यानी पलाश के पेड़ को देख कर मन पेड़ो के प्रति आकर्षित हो जाता है
और रास्ते की थकान दूर हो जाती है, लेकिन आज इनकी संख्या में कमी आती जा रही है इनका रोपण और सरक्षण नही हो रहा है जिससे इनपर संकट मंडराने लगा है, मेरी खास खबर में पढ़िए आज पलाश के पेड़ के बारे में ।
पलाश के फूलों से मनाएं हर्बल होली, त्वचा को देते हैं ठंडक, सुहाना भी लगता है, लोक-साहित्य में भी वर्णन
पलाश के फूलों का प्रयोग रंग बनाने के लिए किया जाता है। इन्हीं से होली के रंग बनाए जाते हैं। वर्तमान में कृत्रिम रासायनिक रंगों की सुलभता ने भले ही लोगों को प्रकृति से दूर कर दिया हो, लेकिन रासायनिक रंगों से होने वाले नुकसान और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के कारण लोग दोबारा प्रकृति की ओर रुख करते हुए
पलाश के फूलों का इस्तेमाल रंगों के लिए करने लगे हैं।
वर्तमान में आदिवासी क्षेत्रों में आजीविका के माध्यम से हर्बल गुलाल बनाने का कार्य भी चालू हुआ है। हर्बल गुलाल की मांग भी बाजार में बढ़ी है। धार मांडव मनावर सहित आसपास आदिवासी क्षेत्रों में पलाश के पेड़ मौजूद हैं। ग्रामीण इलाकों में कुछ वर्ष पूर्व तक पलाश के फूल से बने रंगों से होली खेली जाती थी। प्राचीन काल में इसके फूलों का इस्तेमाल कपड़ों को रंगने के लिए किया जाता था।
ऐसे बनता हैं पलाश के फूल से रंग
होली में सबसे अधिक लाल रंग के अलावा केसरिया एवं संदूरी रंग का भी इस्तेमाल किया जाता है। पलाश के फूल से रंग बनाने के लिए एक किलो पलाश के फूल को छाया में सूखा लें। सूखे फूलों को दो से तीन लीटर पानी में डालकर दो दिन तक के लिए छोड़ देने के बाद पानी का रंग लाल या सिंदूरी हो जाता है। इस रंगीन पानी को 20 लीटर पानी में मिलाने पर एक अच्छा रंग तैयार हो जाता है, जिसका इस्तेमाल सुरक्षित होली खेलने के लिए किया जा सकता है।
गुणों की खान एवं संस्कृति की पहचान है, पलाश का पवित्र पौधा
भारतीय संस्कृति की मान्यता के अनुसार पलाश का पौधा पवित्र माना गया है, जिसकी लकड़ी को पवित्र मानते हुए यज्ञ हवन सामग्री के रूप में काम में लिया जाता है! इस पौधे की जड़ से लेकर, तना, छाल, पत्तियां, पुष्प, फलियां, बीज, आदि सभी भाग अत्यंत ही औषधीय गुण एवं उपयोगी है!
खाकरे अथवा पलाश के चौड़े पत्ते विघटनकारी व प्रकृति हितकारी मानव आहार में उपयोगी पत्तल-दोने निर्माण में काम में ली जाती हैं! पलाश के बड़े, अर्धचंद्राकार एवं गहरे लाल रंग के पुष्प, जोकि फागुन महीने के अंत और चैत्र मास के आरंभ में लगते हैं! उस समय पौधे के सभी पत्ते झड़ चुके होते हैं और पेड़ फूलों से लदपद हो जाते हैं जो देखने में आकर्षक होते हैं और नेत्रों को सुखद अनुभूति देते हैं! इन पुष्पों से प्राकृतिक रंग व हर्बल गुलाल का निर्मित किए जाते हैं! पलाश के फूल एवं बीज औषधीय गुणों वाले एवं सौंदर्य प्रसाधन हेतु सामग्री निर्णय निर्माण में काम आते हैं!
बहुपयोगी पादप प्रजाति पर मंडराने लगा है संकट !
बहुउपयोगी, पवित्र एवं आकर्षक "जंगल की आग" कहलाने वाला पलाश अथवा खाकरे का पौधा बसंत ऋतु में अपने सुंदर फूलों द्वारा जंगल को अपने लाल-पीले रंग से भर देता था तथा सहज ही फूलों से लदे हुए पलाश के पेड़, जीव मात्र को अपनी और आकर्षित करते थे ! लेकिन यह वृक्ष, अपने अस्तित्व को लेकर संकट में है, क्योंकि जितनी मात्रा में पलाश अथवा खाकरे की कटाई की जा रही है, उस अनुपात में इसका रोपण एवं संरक्षण नहीं किया जा रहा और तेजी से इस बहुपयोगी पादप प्रजाति पर संकट मंडराने लगा है !
0 Comments