महू स्थित डा. आंबेडकर विश्वविध्यालय में चल रही सतत विकास पर तीन दिवासीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का दूसरा दिन Second day of the three-day international conference on sustainable development at Mhow-based Dr. Ambedkar University

 महू स्थित डा. आंबेडकर विश्वविध्यालय में चल रही सतत विकास पर तीन दिवासीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का दूसरा दिन

कम या अधिक वर्षा होने से अधिक महत्वपूर्ण है जल का सही प्रबंधन~ गोपाल आर्य

महू। अपने देश में चेरापूंजी समय कुछ ऐसे स्थान है जहां पर बहुत अधिक बारिश होती है और दुनिया की सबसे अधिक बारिश भी वही होती है पर वहां पानी की भयंकर समस्या है। इसकी उलट राजस्थान की जैसलमेर में जहां पर बारिश नाके बराबर होती है साल भर पानी की समस्या नहीं रहती है। कारण बहुत साफ है कि जहां पर अत्यधिक बारिश होती है वहां पर जल प्रबंधन नहीं किया जाता है और जैसलमेर में जल प्रबंधन पर अत्यधिक ध्यान दिया जाता है। यह कहा गोपाल आर्य ने जो दिल्ली में राष्ट्रीय संयोजक हैं पर्यावरण प्रकोष्ठ के।

वे महू स्थित डा. आंबेडकर विश्वविध्यालय में चल रही सतत विकास पर तीन दिवासीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के दुसरे दिन विशेष सत्र के मुख्य अतिथि थे और इसी नाते उन्होंने अपना उद्बोधन दिया। उन्होंने विश्व में हो रही इस चर्चा के बारे में बताया कि अगर धरती पर छठी बार जीवन का सर्वनाश होता है तो इसके लिए सिर्फ मानव ही जिम्मेदार होगा। उन्होंने बिश्नोई समाज के उस अतुलनीय बलिदान के बारे में बताया जिसमें 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने जीवन को न्योछावर कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि कोरोना के दौरान हम सब ने देखा कि प्रदूषण बिल्कुल खत्म हो गया था, हिमालय बिल्कुल साफ दिखे लगा था और नदियां बिल्कुल साफ हो गई थी जब मनुष्य को अपने घर में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इससे पता चलता है कि जितनी भी समस्याएं पर्यावरण के लिए होती है, वे मनुष्य के द्वारा ही की जाती है।


 वे महू स्थित डा. आंबेडकर विश्वविध्यालय में चल रही सतत विकास पर तीन दिवासीय अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के दुसरे दिन विशेष सत्र के मुख्य अतिथि थे और इसी नाते उन्होंने अपना उद्बोधन दिया। उन्होंने विश्व में हो रही इस चर्चा के बारे में बताया कि अगर धरती पर छठी बार जीवन का सर्वनाश होता है तो इसके लिए सिर्फ मानव ही जिम्मेदार होगा। उन्होंने बिश्नोई समाज के उस अतुलनीय बलिदान के बारे में बताया जिसमें 363 लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने जीवन को न्योछावर कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि कोरोना के दौरान हम सब ने देखा कि प्रदूषण बिल्कुल खत्म हो गया था, हिमालय बिल्कुल साफ दिखे लगा था और नदियां बिल्कुल साफ हो गई थी जब मनुष्य को अपने घर में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा था। इससे पता चलता है कि जितनी भी समस्याएं पर्यावरण के लिए होती है, वे मनुष्य के द्वारा ही की जाती है।

उनके पहले पदमश्री डॉक्टर जनक पलटा जो कि इस विशेष सत्र की मुख्य अतिथि थी, ने कहा कि सतत विकास के लिए महिलाएं सही रूप में शिक्षक और गाइड हो सकती है। अपने पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन में डॉ पलटा ने अपने घर के फोटो दिखाए जिसमें उन्होंने बताया कि उनके यहां ज़ीरो वेस्ट पद्धति है। इसका मतलब है कि उनके यहां कूड़ेदान की जरूरत ही नहीं है।

जर्मनी से आए डॉ उलरिच बर्क ने कहा कि सूर्योदय के साथ ही सूर्य से हजारों लाखों किरणों की माध्यम से अलग-अलग तरह की ऊर्जा पृथ्वी पर कुश्ती है उन्होंने अग्निहोत्र की अनोखी खासियतो के बारे में बताया और यह बताया कि अग्निहोत्र से पंचभूत की शुद्धि होती है। अग्निहोत्र से प्राप्त होने वाली राख के बारे में उन्होंने बताया कि इस से जल और मिट्टी दोनों का शुद्धिकरण किया जा सकता है। होमा थैरेपी के बारे में भी बताया जिससे नदियों को भी शुद्ध किया जा सकता है और उन्होंने नदी शुद्ध करने का उदाहरण भी फोटो समेत दिखाया। अम्बेडकर विश्वविद्यालय में होमा थैरेपी पर एक सर्टिफिकेट कोर्स शुरू करने के बारे में भी उन्होंने कहा जिस पर प्रोफेसर डी की वर्मा ने कॉन्फ्रेंस के दौरान ही उपस्थित लोगो को बताया कि विश्वविद्यालय जल्दी में ही होमा ऑर्गेनिक फार्मिंग पर एक सर्टिफिकेट कोर्स चालू करेगा।

डॉ सोना दुबे ने पानी के अंदर रहने वाले जीव जंतुओं पर पर्यावरण संतुलन बिगड़ने के नुकसान के बारे में बताया।

जबलपुर की डॉ छवि कुमार ने कहा कि जिस तरह से विश्व स्तर पर सतत विकास के लिए अंतर्राष्ट्रीय कंसोर्टियम है उसी तरह से भारत में भी एक राष्ट्रीय कंसोर्टियम बनाया जाना चाहिए। साथ ही उन्होंने कहा कि हमारी देश में पारंपरिक जान को इकट्ठा और संजोए रखने के लिए एक नॉलेज पूल बनाया जाना चाहिए। 

बांग्लादेश से पधारे डॉ विनायक चक्रवर्ती ने सुंदरवन इलाके में चल रहे मछली पालन की प्रोजेक्ट के बारे में बताया।

शिक्षाविद ध्वनि शर्मा ने कहा कि सतत विकास और जीरो वेस्ट जीवन पद्धति को लेकर कथनी और करनी में अंतर नहीं होना चाहिए।

डॉ अर्चना शर्मा ने कहा कि अगर व्यक्ति सात्विक जीवन अपनाता है तो सतत विकास के लिए सही मायने में अपना योगदान दें सकता है।

डॉ पूर्णिमा और कुछ अन्य शोधार्थियों ने भी अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत किए।

डॉ डीके वर्मा ने सतत विकास के लिए किए जा रहे यूजीसी स्ट्राइड प्रोजेक्ट के अंतर्गत सोशल एक्शन रिसर्च मॉडल के ऊपर प्रेजेंटेशन दिया और उन्होंने बताया कि किस तरह से आदिवासी बहुल जिले धार, अलीराजपुर, झाबुआ, खरगौन और बरवानी के चालीस शासकीय कॉलेजों के माध्यम से उक्त कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

इस अवसर पर डॉक्टर अंबेडकर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर डीके शर्मा और नानाजी देशमुख विश्वविद्यालय जबलपुर की कुलपति डॉक्टर एसपी तिवारी भी उपस्थित थे।

प्रो डीके वर्मा ने सत्र का संचालन किया तथा डॉ पीसी बंसल ने धन्यवाद ज्ञापित किया।

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