सहजयोग एक अमृतमय अनुभव Sahaja Yoga a blissful experience

सहजयोग एक अमृतमय अनुभव

प्रत्येक मनुष्य के शरीर में जन्म से ही एक सूक्ष्म तंत्र होता है। जिसमें तीन नाड़ियां,सात चक्र और परमात्मा की दी हुई शक्ति विद्यमान है। परमात्मा की यही शक्ति जो कि कुंडलिनी शक्ति के नाम से जानी जाती है,हमारी रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले भाग में सुप्त अवस्था में रहती है। श्री माताजी निर्मला देवी द्वारा सहजयोग के माध्यम से कुंडलिनी शक्ति की जागृति सहज में ही हो जाती है,और मनुष्य योग अवस्था को प्राप्त करता है।

विश्व भर में अनेकों प्रकार की ध्यान की पद्धतियाँ प्रचलित हैं, जिनमें से एक है सहजयोग ध्यान पद्धति। जैसा कि इसके नाम .... सहजयोग से ही ज्ञात होता है कि ये एक अत्यंत सरल ध्यान धारणा की विधि है। 

प्रत्येक मनुष्य के शरीर में जन्म से ही एक सूक्ष्म तंत्र होता है। जिसमें तीन नाड़ियां,सात चक्र और परमात्मा की दी हुई शक्ति विद्यमान है। परमात्मा की यही शक्ति जो कि कुंडलिनी शक्ति के नाम से जानी जाती है,हमारी रीढ़ की हड्डी के सबसे निचले भाग में सुप्त अवस्था में रहती है। श्री माताजी निर्मला देवी द्वारा सहजयोग के माध्यम से कुंडलिनी शक्ति की जागृति सहज में ही हो जाती है,और मनुष्य योग अवस्था को प्राप्त करता है।

इस ध्यान की विधि की खोज श्रीमाताजी निर्मला देवी ने गुजरात राज्य के नारगोल नामक स्थान पर समुद्र तट पर 5 मई 1970 को विश्व का सहस्त्रार खोल कर की थी।

इस अद्भुत और अलौकिक घटना के बाद ही सामूहिक रूप से जन-जन की कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जाने लगा।इससे पूर्व प्राचीन काल में लोग भले ही कुंडलिनी जागरण के बारे में जानते थे परंतु उन दिनों में एक गुरू केवल एक ही शिष्य की कुंडलिनी को जागृत करता था। इसके अतिरिक्त साधक जंगलों में जाकर वर्षों तक तपस्या करके अपने चक्रों का शुद्धीकरण करके भी अपनी कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया करते थे। गीता के छठे अध्याय में श्रीकृष्ण ने भी कुंडलिनी शक्ति का विवरण दिया है, परंतु उस समय कुंडलिनी को जागृत करने की विधा किसी को भी ज्ञात न थी, अतः समाज के धर्म मार्तंडों ने गीता के छठे अध्याय को पढ़ना ही वर्जित कर दिया। 

इसके बाद संत ज्ञानेश्वर जी ने अपने गुरू और बड़े भाई संत श्री नेमिनाथ जी से कुंडलिनी के ज्ञान को सार्वजनिक रूप से बताने की आज्ञा मांगी और ज्ञानेश्वरी नाम के ग्रंथ की रचना की। 

ज्ञानेश्वरी वास्तव में संत ज्ञानेश्वर द्वारा गीता पर लिखा गया भाष्य या विश्लेषण है, जिसमें उन्होंने योग और कुंडलिनी पर विस्तार से लिखा है। इसके विपरीत सहजयोग में परम पूज्य श्री माताजी निर्मला देवी की असीम कृपा से श्रीमाताजी के चित्र को सामने रख कर प्रार्थना करने मात्र से ही तत्क्षण कुंडलिनी शक्ति को जागृत किया जा सकता है। 

एक बार जब हमारी कुंडलिनी जागृत हो जाती है तो ध्यान धारणा के माध्यम से शनैः शनैः साधक अपने चक्रों का शुद्धीकरण कर सकता है। 

इसका अर्थ है कि पहले कुंडलिनी को जागृत कर बाद में शुद्धीकरण की क्रियायें की जाती हैं, जबकि पूर्व में चक्रों का शुद्धीकरण पहले और तत्पश्चात कुंडलिनी का जागरण किया जाता था जो एक लंबी प्रक्रिया थी। छत्रपति शिवाजी महाराज के गुरू संत श्री रामदास स्वामी ने भी कहा था कि कुंडलिनी का जागरण तत्क्षण किया जा सकता है, बस देने वाला योग्य गुरू और एक सत्य का साधक अर्थात लेने वाला होना चाहिये। 

सहजयोग से निःशुल्क आत्मसाक्षात्कार का अनुभव प्राप्त होता है। अधिक जानकारी हेतु आप हमारे हेल्पलाइन नंबर 18002700800 पर कॉल कर सकते हैं या वेबसाइट www.sahajayoga.org.in पर देख अधिक जानकारी देख सकते हैं।

Post a Comment

0 Comments