ज्ञान और संस्कार सजाएं सदा व्यवहार Always decorate with knowledge and values

ज्ञान और संस्कार सजाएं सदा व्यवहार Always decorate with knowledge and values


ज्ञान और संस्कार सजाएं सदा व्यवहार

 ज्ञान का अर्थ है सत्य की अनुभूति करना। ज्ञान प्राप्त होने पर व्यक्ति निर्भय हो जाता है। ज्ञान है तो डर कैसा? ज्ञानी व्यक्ति तो प्रिय अप्रिय सुख दुख इत्यादि भावों से निरपेक्ष होता है। वह वनों में हिंसक जानवरों से नहीं डरता। कंदराओं में बैठ भगवान के परिचायक दो ढाई अक्षर के किसी भी एक नाम का जप करते हैं। वर्षों तक निर्जन घोर जंगल मे विचरण करते  तपस्या करते हैं। ज्ञान प्राप्त हो जाने वाला व्यक्ति ही महापुरुष कहलाता है। क्योंकि ईश्वर की प्रत्यक्ष जानकारी ही ज्ञान है। वह शीत ताप आदि की परवाह नहीं करता। ज्ञानयोग का वर्णन गीता में आता है।ज्ञानी विषयो में नहीं भटकता वह पाँचों विषय रूप रस गन्ध शब्द व स्पर्श से परे की सत्ता होता है। बाहरी विषय से उसका कोई लेना देना नहीं होता।व्यवहार उसी व्यक्ति का सही होता है जिसमें ज्ञान होता है। गीता में कहा ज्ञान के समान पवित्र करने वाला इस संसार में कोई नहीं है।


  ज्ञान भौतिक बौद्धिक सामाजिक क्रिया कलापों की उपज है।यह प्राकृतिक व मानवीय विचारों की अभिव्यक्ति है जो व्यक्ति के व्यवहार में दृष्टिगत होती है। ज्ञान जी वैज्ञानिक होता है वह आनुभविक व सैद्धान्तिक दोनो प्रकार का होता है।समाज मे कलात्मक व धार्मिक अनुभूति भी होती है।ज्ञानी व्यक्ति आत्मनिर्भर होता है।

   संस्कार का व्यहार पर बहुत फर्क पड़ता है। हम देखते हैं बड़ों से बात करने का सलीका नहीं है तो यह कमजोरी संस्कार की है। घर परिवार में नोनिहलों को संस्कार नहीं दिए गए। मान मर्यादा शिष्टाचार से रहना बात करना ये सब मानवीय संस्कार बहुत जरूरी है। हमारे धर्म के शास्त्रों को पढ़ने ग्रंथ पढ़ने से संस्कार आते हैं। विरासत में मिले जंस्कार जन्मजात होते हैं । संस्कार से ही क्षुद्र श्रेणी से विप्र तक कि श्रेणी तय होती है।

हमारे संस्कार ही हमारे व्यवहार में दिखाई देते हैं 

 पढ़े लिखे व्यक्ति व अनपढ़ व्यक्ति के व्यवहार में बहुत अंतर होता है।हमारी संस्कृति में जीवन मूल्य हैं दया सत्य बोलना परोपकार करना सहयोगी भावना परोपकार करना । अपने कर्तव्य को निभाना। मानव धर्म सबसे बड़ा धर्म है। तो ज्ञान के साथ साथ हमारे पवित्र विचार से संस्कार को निभाएं। व्यक्ति का मृदु व्यवहार हो।

  हमारी भारतीय संस्कृति में सोलह संस्कारों का वर्णन आया है।संस्कार का अर्थ है शुद्घिकरण करना। वर धार्मिक कृत्य जो किसी भी व्यक्ति को अपने समुदाय का पूर्ण रूप से योग्य सदस्य बनाने क लिए कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य जैसे शरीर में मस्तिष्क को पवित्र करने के लिए किए जाते हैं।

संस्कारों द्वारा मनुष्य अपना व दूसरों का कल्याण करता है।

  व्यवहार सभी सन्देहों को दूर करता है। अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए मनुष्य  विविध प्रकार की प्रतिक्रियाएं करता है। वह सांसारिक उद्दीपनों से  टकराता है । व्यवहार में ज्ञान व संस्कार का बहुत प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति का व्यवहार ही उसके व्यक्तित्व का दर्पण है

ज्ञान का अर्थ है सत्य की अनुभूति करना। ज्ञान प्राप्त होने पर व्यक्ति निर्भय हो जाता है। ज्ञान है तो डर कैसा? ज्ञानी व्यक्ति तो प्रिय अप्रिय सुख दुख इत्यादि भावों से निरपेक्ष होता है। वह वनों में हिंसक जानवरों से नहीं डरता। कंदराओं में बैठ भगवान के परिचायक दो ढाई अक्षर के किसी भी एक नाम का जप करते हैं। वर्षों तक निर्जन घोर जंगल मे विचरण करते  तपस्या करते हैं। ज्ञान प्राप्त हो जाने वाला व्यक्ति ही महापुरुष कहलाता है। क्योंकि ईश्वर की प्रत्यक्ष जानकारी ही ज्ञान है। वह शीत ताप आदि की परवाह नहीं करता। ज्ञानयोग का वर्णन गीता में आता है।ज्ञानी विषयो में नहीं भटकता वह पाँचों विषय रूप रस गन्ध शब्द व स्पर्श से परे की सत्ता होता है। बाहरी विषय से उसका कोई लेना देना नहीं होता।व्यवहार उसी व्यक्ति का सही होता है जिसमें ज्ञान होता है। गीता में कहा ज्ञान के समान पवित्र करने वाला इस संसार में कोई नहीं है।

 डॉ. राजेश कुमार शर्मा पुरोहित 

वि,साहित्यकार भवानीमंडी

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